गिरिपार क्षेत्र में सर्दियों में लोग लगाते हैं बिच्छू बूटी के साग के चटकारे, विटामिन और खनिज तत्वों से भरपूर है बिच्छू बूटी अर्थात भाभर का साग

गिरिपार क्षेत्र में सर्दियों में लोग लगाते हैं बिच्छू बूटी के साग के चटकारे,  विटामिन और खनिज तत्वों से भरपूर है बिच्छू बूटी अर्थात भाभर का साग

अक्स न्यूज लाइन राजगढ़  18  जनवरी : 

 सिरमौर के गिरिपार  क्षेत्र में विशेषकर सर्दियों के दिनों में भाभर यानि बिच्छू बूटी का साग मक्की की रोटी की रोटी के साथ बड़े शौक के साथ खाया जाता है । लोगों का मानना है कि भाभर का साग बहुत ही स्वादिष्ट होने के साथ साथ इसकी ताहसीर गर्म होती है जिससे शरीर में ठंड का प्रकोप कम होता है ।

बता दें कि सरसों और पालक के साग के स्वाद से सभी परिचित है परन्तु भाभर अर्थात बिच्छू बूटी के साग पहाड़ी व्यंजनों में से एक है और इसके साग का  जायका और स्वाद अनूठा होता है । बिच्छू बूटी का जहां ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे बच्चों को डराने के लिए इस्तेमाल किया जाता है वहीं पर भाभर में विटामिन सी और खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते  है ं। सबसे अहम बात यह है कि बिच्छू बूटी को उगाया नहीं जाता बल्कि स्वतः ही यह बूटी खेत खलिहान और बंजर भूमि पर उगी होती है। बिच्छू बूटी के डंक से काफी देर तक जलन रहती है तभी इसको बिच्छू बूटी का नाम दिया गया है । ज्योतिषविदों का मानना है शनि की दशा में बिच्छू बूटी की जड़ को विशेष मूहूर्त में पहनने से शनि का प्रकोप कम हो जाता है और ऐसे व्यक्ति को नीलम इत्यादि को पहनने की आवश्यकता नहीं होती है ।

रिटब के सुरेश हाब्बी का कहना है कि सर्दियों में उनके घर पर अतीत से  बिच्छू बूटी का साग प्रायः बनाया जाता है क्योंकि सर्दियों में मक्की की रोटी के साथ बहुत ही स्वादिष्ट लगता है और इसके उपयोग से शरीर में ठंड भी नहीं लगती है । उन्होने बताया कि अतीत में सर्दियों के दौरान जब कोई सब्जी उगी नहीं होती थी तो भाभर का साग ही एक मात्र विकल्प हुआ करता था । इसके अतिरिक्त पहाड़ी क्षेत्रों में सर्दियों के दौरान तीन महीने तक अधिकतर  मक्की के आटे का प्रयोग किया जाता है ।  भाभर का साग और अरबी की सब्जी के साथ  मक्की की रोटी का एक विशेष तालमेल है ।

  आयुर्वेद चिकित्सक डाॅ0 विश्वबंधु जोशी ने  बताया कि बिच्छू  बूटी का वैज्ञानिक नाम अर्टिका डाइओका है। इसकी सबसे अधिक खेती अफ्रीका, यूरोप, एशिया और उत्तरी अमेरिका में की जाती है। उन्होने बताया कि बिच्छू बूटी में विटामिन सी और लौह की उच्च मात्रा प्रचुर मात्रा में पाई जाती है जोकि लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन को उत्तेजित करने के लिए बहुत ही लाभदायक होती  बताया कि बिच्छू बूटी से बनी चाय का नियमित रूप से सेवन लोअर सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर को कम करने में मदद कर सकता है और कार्डियोवास्कुलर सिस्टम पर तनाव को दूर कर सकता है।

भले की आधनिकता की चकाचैंध में मनुष्य के रहन सहन में काफी बदलाव देखने को मिल रहा है परंतु पारंपरिक वेष भूषा, मेले और त्यौहार तथा पहाड़ी  व्यजंनों  का बदलते परिवेश में  बहुत महत्व  है जिससे प्रदेश की समृद्ध संस्कृति के सरंक्षण एवं संवर्धन को बल मिलता है ।