आत्महत्या से नही, जिंदगी की मुश्किलों को लड़ कर जीतिए सफ लता पांव चूमेगी......

आत्महत्या से नही, जिंदगी की मुश्किलों को लड़ कर जीतिए सफ लता पांव चूमेगी......
आत्महत्या से नही, जिंदगी की मुश्किलों को लड़ कर जीतिए सफ लता पांव चूमेगी......

नाहन, :असफ लता से हताश होकर या फि र घरेलू समस्याओं से तंग आकर खुद ही जिंदगी का अंत कर लेना यानि आत्महत्याओं का सिलसिला लगातार बढ़ता जा रहा है। खास तौर से युवाओं में आत्महत्या करने का ग्राफ  आए दिन उपर जा रहा है।
युवा तो आत्महत्याओं के मामले में आगे है ही लेकिन घरों में जिम्मेवार लोग चाहे महिला हो या फि र पुरुष सुसाईड करने में पीछे नही है। आत्महत्या के पीछे अक्सर डिप्रेशन को एक बड़ा कारण मना लिया जाता है। सम्बन्धों में बिखराव भी आत्महत्या की ओर कदम माना जाता है ।
पुलिस के पास आत्महत्या को रोकने के लिए  रामबाण नही  
 आत्महत्याओं को रोकने के लिये कारगर उपाय नही है । पुलिस भी आत्महत्या को लेकर कुछ नही कर सकती । अक्सर मीडिया के यह सवाल उठता रहा है की  सुसाईड करने की सोच रखने वालों की काउंसिलिंग करनी चाहिए मगर यह कैसे होगा।  पुलिस के पास ऐसा कौन सा रामबाण है जिसको चला कर सुसाईड करने वाले तक पहुंचा जा सके। पुलिस की तफीतश तो 
सुसाईड नोट वाले मामलों आगे बढती है कई बार आत्महत्या के कारणों का खुलासा हो जाता है। 
आत्महत्या करने वालो में ज्यादातर युवा
आत्महत्या करने वालो में ज्यादा तर छात्र, युवा नौजवान कामकाजी युवक ,युवतियां नवविवाहित शादी के कुछ साल बाद आत्महत्या कर रहे। आज के दौर में न सुनने की आदत तो 10 लोगो मे शायद एक भी नही रह गई है। संयम जैसे शब्द तो युवाओं की  सोच में कहीं नहीं है ।
अकसर अभिभावक सुनते नही
छात्रों में आत्महत्या करने का ट्रेडं लगातार बढ रहा है। छात्रों ने पूछे जाने पर बताया कि इस उम्र आत्महत्या करना । आसान नहीं है। जबकि कि छात्र तो पढ़ाई के साथ अपने उज्वल भविष्य के सपनों के साथ आगे बढऩा चाहते है लेकिन जो छात्र आत्मा हत्या कर रहे है। शायद उनके अभिभावक उनको सुनते नही है । ऐसे में डिप्रेशन घेर लेता है । दोस्तों को अपनी सुना। तो कई बार मजाक उड़ाया जाता है। शिक्षकों को अपने को दिल को बात कहने साहस नही होता ऐसे आत्महत्या ही शायद मुश्किलों का हल नजर आता है।
युवाओं को खुद से प्यार नही
आज के युवाओं को खुद से प्यार नही है , सोसायटी के उस फ्रे म में खुद को फि ट करने की कोशिश कर रहे हैं जिसका कोई वजूद ही नही है। सोसायटी चाहती है सबको खुश रखा जाए। ऐसे जब न चाहते हुए औरों को खुश रखने के लिए खुद को दुख देना भी डिप्रेशन में धकेलना ही है। ऐसे में युवा सोसायइटी की चिंता छोड़ कर पहले खुद से प्यार करना सीखें,लोग क्या कहगें इसकी परवाह न करें। जीवन की मुश्किलों का अंत आत्महत्या से नही आत्म विश्वास के साथ लड़कर करें सफलता कदम चूमेगी । 
- आज के दौर में तनाव और डिप्रेशन में लोग जी रहे है । जब किसी को यह सब होता है तो व्यक्ति गलत दिशा ले जाता है । ऐसे में तनाव व डिप्रेशन के लक्षणों पर बारीकी से गौर करना चाहिए जैसे नींद का कम आना या ज्यादा आना ,कम खाना या बहुत ज्यादा खाना। वजन कम होना । किसी काम में मन न लगना ए रोते रहना। अकेला महसूस करनाए या फि र आत्माहत्या के बारे में सोचना आदि शामिल है 
-मैथिली शेखर, मनोवैज्ञानिक साईं अस्पताल नाहन
-आत्महत्याआंका लगातार बढता ग्राफ चिंता और चिंतन का विषय है।  युवाओं को लेकर उनके परिजनों को सचेत रहने के जरूरत है। खासतौर डिपरेशन की स्थित में काऊंसलिगं का सहारा लें। हर समस्या का हल समाधान में छिपा होता है। 
-ओमापति जम्वाल, एसपी सिरमौर