जीवन-निदान - विदुर, मनीषी (महाभारतकालीन) धैर्य के साथ सुनें और व्यर्थ में न बोलें

जीवन-निदान   - विदुर, मनीषी (महाभारतकालीन) धैर्य के साथ सुनें और व्यर्थ में न बोलें

जो धातु बिना गर्म किए मुड़ जाती है, उसे आग में नहीं तपाया जाता। जो काष्ठ खुद झुका होता है, उसे कोई झुकाने का प्रयत्न नहीं करता। बुद्धिमान मनुष्य को भी विनयशील होना चाहिए।
• जिसके कर्तव्य, सलाह और पहले से लिए गए निर्णय को केवल कार्य सम्पन्न होने पर ही अन्य लोग जान पाते हैं, जो किसी विषय को शीघ्र समझ लेता है किंतु उसके बारे में धैर्यपूर्वक सुनता है, जो अपने कार्यों को कामना नहीं बुद्धिमानी से पूरा करता है, और किसी के बारे में बिना पूछे व्यर्थ की बात नहीं करता है- वही ज्ञानी है।
• मानव अकेला पाप करता है और उसका आनंद कई लोग उठाते हैं। आनंद उठाने वालों को कोई अंतर नहीं पड़ता, किंतु पाप करने वाला दोष का भागी बनता है।
• अत्यधिक अभिमान, अति वाचालता, त्याग का अभाव, क्रोध, अपने बारे में ही सोचना यानी स्वार्थ और मित्रद्रोह, ये छह तीखी तलवारें हैं जो मनुष्यों की आयु को काटती हैं और उन्हें अधिक वर्ष तक जीने नहीं देतीं। ये ही मनुष्यों का वध करती हैं, मृत्यु नहीं। इनसे हमेशा बचने का प्रयास करें।   (भास्कार से साभार)