हिमाचल हाईकोर्ट ने हिल्स स्टेशन में तैनात एयरफोर्स कर्मियों को विशेष भत्ता देने के केंद्र सरकार को आदेश
सरकार को आदेश दिए। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश विरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने अपने आदेशों में स्पष्ट किया कि भत्ते की बकाया राशि याचिका दायर करने से तीन वर्ष पूर्व से देनी होगी। कोर्ट ने केंद्र की याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए यह आदेश पारित किए।
केंद्र ने केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के निर्णय को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी थी। इस निर्णय के अनुसार हिल स्टेशन में तैनात एयरफोर्स कर्मियों को विशेष भत्ता देने के आदेश दिए थे। हिल स्टेशन कसौली के एयरफोर्स स्टेशन में प्रतिवादी विभिन्न पदों पर कार्यरत थे।
पांचवें वेतन आयोग की सिफारिश पर केंद्र सरकार ने हिल स्टेशन में तैनात कर्मियों को विशेष भत्ता देने का निर्णय लिया था, लेकिन इस बीच केंद्र ने कुछ कर्मचारियों को भत्ता नहीं दिया।
इस पर प्रतिवादियों ने वर्ष 1998 में केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के समक्ष याचिका दायर की। ट्रिब्यूनल ने याचिका स्वीकार करते हुए कर्मचारियों को विशेष भत्ता देने के आदेश दिए, लेकिन इस निर्णय को केंद्र ने हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी।
दलील दी गई कि जिस निर्णय के तहत कर्मचारियों को विशेष भत्ता देने का निर्णय सुनाया था, उसके तहत प्रतिवादियों को यह भत्ता नहीं दिया जा सकता, क्योंकि वे इस मामले में पक्षकार नहीं थे। केंद्र की याचिका का निपटारा करते हुए अदालत ने पाया कि जिस भत्ते को केंद्र ने ही लागू करने का निर्णय लिया है, उससे प्रतिवादियों को वंचित नहीं किया जा सकता।
प्रदेश हाईकोर्ट ने स्थानांतरण के मामले में महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने कहा कि कर्मचारी का स्थानांतरण करना केवल नियोक्ता का विशेषाधिकार है। वैधानिक नियमों का उल्लंघन करने पर ही अदालत हस्तक्षेप कर सकती है।
खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि निस्संदेह, प्रशासनिक स्थानांतरण संबंधित विभाग का विशेषाधिकार और सक्षम अधिकारी इसके आकलन करने के लिए उपयुक्त हैं। हालांकि, सक्षम अधिकारियों को यह कार्य जनता के हित में करना होगा, अन्यथा कर्मचारी न्यायालय का रुख कर सकता है।
अदालत ने कहा कि प्रशासनिक स्थानांतरण संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के परीक्षण में खरा उतरना चाहिए, अन्यथा इसे मनमाना माना जाएगा। अप्रासंगिक प्रशासनिक स्थानांतरण की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है।
अदालत ने याचिकाकर्ता डॉक्टर रिचा सलवान के स्थानांतरण को रद्द करते हुए यह निर्णय सुनाया। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि उसे केवल प्रतिवादियों को सोलन में समायोजित करने के लिए स्थानांतरित किया गया है।
दलील दी गई कि अनुबंध की सेवा अवधि पूरी होने पर उसे 1 जनवरी 2022 को नियमित किया गया। उसके बाद याचिकाकर्ता को हमीरपुर से थुनाग स्थानांतरित किया गया। जबकि, थुनाग में कार्यरत प्रतिवादी को सोलन के समायोजित किया गया। याचिकाकर्ता ने 11 अक्तूबर 2022 के आदेशों को अदालत के समक्ष चुनौती दी थी।
अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता को स्थानांतरित किए जाने वाला आदेश न तो जनहित में है और न ही संविधान के प्रावधानों के अनुरूप है। यह सिर्फ प्रतिवादियों को उनके मनपसंद स्थान में समायोजित करने के लिए पारित किया गया है।