कोटला में भगवान गणपति देवठी के रूप में विराजमान

कोटला में भगवान गणपति देवठी के रूप में विराजमान

अक्स न्यूज लाइन नाहन ,30 सितम्बर :
सिरमौर जिला की प्रसिद्ध सैनधार के कोटला मोलर में भगवान श्री गणेश जी का अतिप्राचीन मन्दिर स्थित है, जहां पूरा साल श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।यह आलौकिक मन्दिर नाहन से वाया बेचड का बाग लगभग साठ तथा ददाहू से लगभग सोलह किलोमीटर दूर स्थित है। यहां कोटला में भगवान गणपति देवठी के रूप में विराजमान हैं जबकि मोलर में मन्दिर में विराजमान हैं। मन्दिर के साथ ही प्राकृतिक जल का स्त्रोत है जो चर्मरोगियों के लिए वरदान से कम नहीं है।
 

बताया जाता है कि यहां पर देवठी की स्थापना सन् 1700 ईस्वी में हुई थी।तब यह मन्दिर पुराने पत्थरों तथा स्लेट का था परन्तु समय-समय पर इस मंदिर का जीर्णोद्धार होता रहा तथा आज यह भव्य मंदिर के रूप में विराजमान है।
कोटला मोलर के स्थानीय युवक मुकेश शर्मा,जो खाद्य एवं आपूर्ति विभाग नाहन में सेवारत हैं, बताते हैं कि यहां हर रविवार को भण्डारे का आयोजन किया जाता है। साल की चार संक्रांतियों को इस पवित्र स्थल पर विशाल भण्डारे आयोजित किए जाते हैं जिनमें साथ लगते हरियाणा, उत्तराखंड तथा पंजाब से भी श्रद्धालु भाग लेते हैं। साल के कुछ समय श्री गणपति बप्पा साथ के गांवों में परिक्रमा पर जाते हैं। इस मंदिर में यदि कोई सच्चे मन से मन्नत कर ले तो भगवान श्री गणपति उसे अवश्य ही पूर्ण करते हैं। भगवान गणपति को मोदक मिष्ठान विशेष प्रिय है।

में भगवान शिव तपस्या में लीन थे तथा माता पार्वती ने अपने शरीर की मैल से पुत्र उत्पन्न किया तथा उसे द्वार पर स्थित कर भीतर स्नान करने चली गई।उस बालक को निर्देश दिए गए थे कि जब तक वह स्नान से वापस न आए किसी को अन्दर नहीं आने देना। तत्काल ही भगवान शिव वहां आए तथा अन्दर जाने की ज़िद्द करने लगे। भगवान शिव तथा उस बालक में भयंकर युद्ध हुआ। भगवान शंकर ने अपने त्रिशूल से उस बालक का शीश काट दिया।उसी समय मां पार्वती वहां आई तथा बालक का कटा शीश देख क्रोधित हो उठी। माता पार्वती ने भद्रकाली का रुप धारण कर अपनी दश महाविद्याओं को प्रकट कर सृष्टि का विनाश करने को तैयार हो गई। भगवान शंकर ने माता पार्वती के यह तेवर देख अपने गणों को किसी बच्चे का शीश काट कर लाने के निर्देश दिए।गण हाथी के बच्चे का शीश लाए तथा भगवान शिव ने उस बालक के धड़ पर हाथी के बच्चे का शिर रख उसे पुनर्जीवित कर दिया तथा गजानन उसका नामकरण कर दिया।

उसको समस्त देवताओं की पूजा में अग्रणी अधिकार देते हुए सर्वशक्तिमान बना दिया गया।
वर्तमान में भी हर पूजा में भगवान गणेश जी की वंदना सबसे पहले की जाती है। ग्रह दोष निवारण हेतु भगवान गणेश के द्वादश नाम जप, श्री गणेश स्तोत्र इत्यादि पाठ फलदाई बताये गए हैं।