तीज त्यौहारों की श्रृखंला में सबसे विचित्र पर्व है डगैली... क्योंथल क्षेत्र में परंपरानुसार मनाया डगैली पर्व

तीज त्यौहारों की श्रृखंला में सबसे विचित्र पर्व है डगैली...    क्योंथल क्षेत्र में परंपरानुसार मनाया डगैली पर्व

अक्स न्यूज लाइन शिमला 01सितम्बर : 

डायनों का पर्व डगैली  क्योंथल क्षेत्र में बीती रात  परंपरा के अनुसार मनाया गया । बता दें कि  प्रदेश में मनाए जाने वाले तीज त्यौहारों की श्रृखंला में सबसे विचित्र पर्व है  डगैली  । जोकि हर वर्ष रक्षा बंधन पर्व के एक माह उपरांत  भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी व अमावस्या को मनाया जाता है । इस पर्व को  विशेषकर जिला शिमला, सिरमौर और  सोलन में प्राचीन परंपरा के अनुरूप  मनाया जाता है। कुछ क्षेत्रों में इसे कृष्ण जन्माष्टमी को भी मनाया जाता है । इस वर्ष यह   पर्व 02 व 03 सितंबर को  क्योंथल क्षेत्र में परंपरा के अनुरूप मनाया जा रहा है ।

जनश्रुति के अनुसार डगैली को डायनों का पर्व माना जाता है।  बताते हैं कि इस पर्व में रात्रि को  आसुरी शक्तियां पूर्ण रूप से जागृत होती है और डायनों द्वारा अपनी कला से अदृष्य नृत्य किया जाता है  । बता दें कि   अतीत से ही डगयाली को सबसे भयावह वाला त्यौहार माना जाता रहा है । इस त्यौहार के कुछ दिन पहले  स्थानीय देवी देवता के पुजारी घर घर जाकर सुरक्षाचक्र के रूप में देवता के चावल व सरसों के दाने देते हैं जिसे चतुदर्शी की रात्रि को घर के मुख्य दरवाजे पर रखा जाता है ताकि आसुरी शक्तियों का घर में प्रवेश न हो । इसके अतिरिक्त भेखल झाड़ी की टहनियों को भी मंदिर, घर व गौशाला के दरवाजे, खिड़की पर सुरक्षा के रूप में लटकाई जाती है ।

इस पर्व पर विशेषकर अरबी के पत्तों के पतीड़ जिसे स्थानीय भाषा मंे धींघड़े कहते हैं, को बनाए  जाते है जिसे चौदश तिथि अर्थात डगैली की पहली  रा़ित्र को घर की दलहीज पर तेजधार चाकू अथवा कुल्हाड़ी से काटकर इसके चार टुकड़े बनाए जाते हैं जिसे  छत पर जाकर  चारों दिशाओं में डायनों के नाम से  चढ़ाया जाता हैं ताकि आसुरी शक्तियां कोई नुकसान न कर सके । तांत्रिक डगयाली की रात्रि को साधना के सबसे उपयुक्त समय बताते हैं । इस अमावस्या को शास्त्रों में कुशोत्पाटिनी अमावस्या कहते हैं । इस दिन लोग पूजा के लिए कुशा उखाड़ कर वर्ष भर घर में रखते है जिसका़ विशेष महत्व माना जाता है। डगैली की  सांय ढलते ही लोग घर में दुबक जाते है ।
 वरिष्ठ नागरिक दयाराम वर्मा , प्रीतम सिंह ठाकुर का कहना है कि क्षेत्र कई स्थानों पर विशालकाय शिलाएं आज भी मौजूद है जिस बारे उनके पूर्वज बताते थे कि इन शिलाओं को डायनों ने रात को किसी गांव से उठाकर लाकर यहां रखा था । जोकि इस त्यौहार की प्रासंगिकता को दर्शाता है ।