बजट से प्रदेश के किसान-बागवान मायूस, बजट में नहीं दिखी व्यवस्था परिवर्तन की खास झलक : किसान सभा
अक्स न्यूज लाइन शिमला 20 फरवरी :
2024-25 के लिए प्रदेश सरकार द्वारा पेश किये गए बजट में व्यवस्था परिवर्तन की झलक नज़र नहीं आई। बजट किसानों-बागवानों के उत्पाद के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य देने, उत्पादों के लिए प्रसंस्करण उद्योग स्थापित करने और विभिन्न ढांचागत परियोजनाओं के लिए किसानों से ली जा रही कृषि भूमि का उचित मुआवज़ा देने के बारे में मौन है। यह मानना है प्रदेश के किसनों, बागवानों और पशुपालकों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन हिमाचल किसान सभा का।
राज्य सरकार के बजट पर प्रतिक्रिया देते हुए हिमाचल किसान सभा के राज्याध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह तँवर ने कहा कि प्रदेश के की कुल आबादी का 63 फीसदी हिस्सा किसानी-बागवानी और पशुपालन से अपनी आजीविका कमा रहा है लेकिन व्यवस्था परिवर्तन की सरकार के बजट में इस आबादी के भविष्य को लेकर संवेदनशीलता की कमी नज़र आई।
डॉ. तँवर ने कहा कि प्रदेश की कृषि भूमि का एक बड़ा हिस्सा फोरलेन, राष्ट्रीय राजमार्गों, पनविद्युत परियोजनाओं अन्य औद्योगिक ढांचों के निर्माण में जा रहा है। सरकार किसानों की भूमि को सहमति से या जबरन अधिग्रहित कर रही है। लेकिन इसकी एवज़ में किसानों को उचित मुआवज़ा नहीं दिया जा रहा। भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवज़ा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 के नियमों की अनदेखी की जा रही है। एक्ट के अन्तर्गत मार्केट रेट (सर्कल रेट) में फैक्टर 2 के बजाय फैक्टर 1 के आधार पर मुआवज़ा दिया जा रहा है।
इसके अलावा परियोजना के लिए खनन से किसानों की चरागाहों, खेतों, जल स्रोतों और बगीचों के नुकसान का भी उचित मुआवज़ा नहीं मिल रहा और न ही उसमें पारदर्शिता है। किसान सभा ने फैक्टर 2 के तहत किसानों की अधिग्रहित की गई भूमि के लिए चार गुणा मुआवज़े की मांग की है।
राज्याध्यक्ष ने बताया कि इसका बोझ राज्य सरकार पर नहीं आएगा। इसे केन्द्र द्वारा अदा किया जाना है लेकिन राज्य सरकार को इसकी सैद्धांतिक सहमति देनी होगी।
वहीं बजट में सेब के लिए ए ग्रेड, बी ग्रेड और सी ग्रेड के लिए क्रमशः 60, 48 और 24 रुपये के हिसाब से समर्थन मूल्य देने की बागवानों की मांग को भी नज़रअंदाज़ किया गया है। सब्ज़ी, फूल और मसालों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पर भी बजट मौन है।
दूध का सरकारी खरीद मूल्य बढ़ाया ज़रूर गया है लेकिन यह चुनाव से पहले दी गई गारंटी के अनुरूप नहीं है। वहीं पशुपालकों की लम्बे समय से चली आ रही मांग फीड और फॉडर में सब्सीडी देने और फॉडर बैंक बनाने के लिए भी बजट में कोई प्रावधान नहीं रखा गया है।
प्रदेश में किसानों की फसलों को नुकसान करने वाले लावारिस पशुओं के लिए बजट में प्रावधान है लेकिन इसके स्थाई समाधान के लिए बजट में इज़ाफा करना ज़रूरी है। वहीं कैरिंग कैपेसिटी से अधिक जंगली जानवारों, जंगली सूअर, नीलगाय आदि से राहत पर भी बजट में कोई ज़िक्र नहीं है। इनकी विशेषज्ञों की उपस्थिति में प्रशिक्षित शूटरों के माध्यम से सांइटिफिक कलिंग करने के लिए योजना की आवश्यकता है। शहरी क्षेत्रों में बन्दरों और आवारा कुत्तों से बचाव के लिए भी ठोस कदम उठाने की ज़रूरत है। स्कूल खुलने के साथ ही इन जानवरों की वजह से बच्चों और महिलाओं का रास्तों पर चलना मुहाल हो जाता है।
डॉ. तँवर ने कहा कि उम्मीद है सरकार इन मुद्दों पर संज्ञान लेते हुए बजट का उचित प्रावधान करेगी और वार्षिक योजना में इसके लिए ठोस कदम उठाएगी।