हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान शिमला ने रिकांगपिओ में आयोजित किया एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम

हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान शिमला ने रिकांगपिओ में आयोजित किया एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम

प्रशिक्षण कार्यक्रम में कल्पा, निचार एवं पूह ब्लॉक से 25 प्रतिभागियों ने लिया भाग
हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान, शिमला द्वारा आज कृषि विज्ञान केंद्र, रिकांगपिओ में किन्नौर वन मण्डल के अग्रिम पंक्तियों के कर्मियों एवं प्रगतिशील किसानों के लिए जुनिपेरस पॉलीकार्पोस की नर्सरी (शुक्पा) और पौधरोपण तकनीक पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में किन्नौर जिला के कल्पा, निचार एवं पूह ब्लॉक से आये 25 प्रतिभागियों ने भाग लिया।
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्घाटन हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान, शिमला के निदेशक डॉ संदीप शर्मा द्वारा किया गया। उन्होंने हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान, शिमला द्वारा उत्तर-पश्चिमी हिमालयी क्षेत्रों में वानिकी से संबंधित किए जा रहे कार्यों पर प्रतिभागियों के समक्ष अपने विचार रखे। सह निदेशक कृषि विज्ञान केन्द्र किन्नौर डॉ अशोक कुमार ठाकूर ने कार्यक्रम में आये सभी प्रतिभागियों और एचएफआरआई से आए वैज्ञानिकों का स्वागत किया और इस कार्यक्रम को केवीके किन्नौर के साथ मिलकर आयोजित करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद व्यक्त किया।
इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के समन्वयक वैज्ञानिक पीताम्बर सिंह नेगी ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया और किन्नौर वन मण्डल के अग्रिम पंक्ति के अधिकारियों एवं किसानों के समक्ष जुनिपेरस पॉलीकार्पोस (शुक्पा) की नर्सरी और पौधरोपण तकनीक पर एक विस्तृत प्रस्तुति दी। अपनी प्रस्तुति में, उन्होंने शीत मरुस्थल क्षेत्र के महत्वपूर्ण वृक्ष शुक्पा के महत्व को विस्तार से बताया। उन्होंने प्रतिभागियों को बताया कि जुनिपेरस पॉलीकार्पोस मूल रूप से हिमाचल प्रदेश और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश के आंतरिक शुष्क एवं शीत मरुस्थल क्षेत्रों में पाया जाता है। इन क्षेत्रों में स्थानीय समुदायों द्वारा विभिन्न धार्मिक संस्कारों को करने के लिए शुक्पा की पत्तियों का व्यापक रूप से मंदिरों और मठों में धूप के रूप में उपयोग किया जाता है। पूर्व में बीज द्वारा इस वृक्ष के कृत्रिम पुनर्जनन की तकनीक उपलब्ध नहीं थी। हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान, शिमला ने जुनिपेरस पॉलीकार्पोस (शुक्पा) के बीज, नर्सरी और रोपण तकनीक का सफलतापूर्वक विकास किया।
उन्होंने प्रतिभागियों को बताया कि हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान, शिमला ने स्पीति घाटी के ताबो में जुनिपर का अनुसंधान-एवं-प्रदर्शन रोपण क्षेत्र भी स्थापित किया है और संस्थान द्वारा किन्नौर, लाहौल एवं स्पीति, लेह और कारगिल में स्थानीय समुदायों, गैर सरकारी संगठनों और वन विभाग को जुनिपर के अब तक 15000 पौधे भी वितरित किए हैं ताकि इन शीत मरुस्थल क्षेत्रों में इस मूल्यवान पेड़ को रोपण कर इसका संरक्षण किया जा सके।
यह प्रशिक्षण कार्यक्रम किन्नौर वन मण्डल के अग्रिम के अधिकारियों एवं प्रगतिशील किसानों को जुनिपेरस पॉलीकार्पोस (शुक्पा) की नर्सरी और पोधरोपण तकनीक से अवगत कराने के लिए आयोजित किया जा रहा है। प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान, किन्नौर वन मण्डल के अग्रिम पंक्तियों के कर्मी एवं प्रगतिशील किसानों को जुनिपरस पॉलीकार्पोस (शुकपा) के बीज संग्रह, प्रसंस्करण, नर्सरी और वृक्षारोपण तकनीक पर प्रशिक्षित किया गया। इसके अलावा डा० जगदीश सिंह, वैज्ञानिक ने कृषि वानिकी का उत्पादकता बढ़ाने एवं ग्रामीण आजीविका में वृद्धि एवं हिमालिये क्षेत्रों में पाये जाने वाले महत्वपूर्ण जड़ी बूटियों की कृषिकरन तकनीक विषय पर अपना व्याखान दिया। डा० संदीप शर्मा, निदेशक ने आधुनिक नर्सरी तकनीक का गुणवत्तापूर्ण रोपण स्टॉक में भूमिका विषय पर अपना व्याख्यान दिया। डा० अरुण नेगी, वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र, रिकांगपिओ ने शीतोष्ण फलों की फसलों का कैनोपी प्रबंधन विषय पर अपना व्याख्यान दिया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के प्रतिभागियों ने शीत मरुस्थल क्षेत्रों में जुनिपर के संरक्षण के लिए विभिन्न गतिविधियों को करने के लिए हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान, शिमला के प्रयासों की सराहना की।

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