रेणुका बांध प्रबंधन की सामाजिक प्रभाव आंकलन रिपोर्ट को खारिज किया संर्घष समिति ने - नया सर्वे करने की आवाज उठाई
नाहन, 21 सितंबर श्री रेणुका बांध संर्घष समिति ने बांध प्रबंधन की सामाजिक प्रभाव आंकलन रिपोर्ट को खारिज करते हुए एक बार फिर से सामाजिक प्रभाव आंकलन सर्वे कराए जाने की आवाज उठाई है। बांध प्रबंधन द्वारा वर्ष 2008-09 में यह सर्वे करवाया गया था। सर्वे रिपोर्ट को विस्थापितों के हकों की लड़ाई लड़ रही संर्घष समिति ने खारिज करते हुए आरोप लगायया कि इस आंकलन से अधिक तर विस्थापितों को कोई फायदा नही होने वाला है क्योंकि सामाजिक प्रभाव आकलन विस्थापितों के अनुरूप नहीं हुआ है तथा तथ्य हीन है जिस संस्था को सामाजिक प्रभाव आकलन का जिम्मा सौंपा गया था उन्होंने डूब क्षेत्र में ना जाकर इस कार्य में मात्र औपचारिकता पूर्ण की है। जिस कारण पुनर्वास एवं पुर्नस्थापन योजना में बहुत सारी खामियां रह गई। समिति के अनुसार जिसमें विस्थापितों को दिए जाने वाला अनुदान बहुत कम है। इसमें संशोधन करने की आवश्यकता है। आर एंड आर प्लान के 3,2,3 पेज नं 12 व 5,8 पेज नं 21 को संशोधित किया जाना चाहिए। जो लोग डूब क्षेत्र में अपनी आजीविका चला रहे हैं तथा जिनकी हल चलती जमीन डूब क्षेत्र में गई है। उन्हें पूर्ण विस्थापित का दर्जा प्रदान किया जाए तथा विस्थापितों से किसी प्रकार का हलफनामा न लिया जाए। समिति ने मांग करते हुए कहा कि
बांध प्रबंधन द्वारा परिवार के मुखिया के साथ जो सदस्य परिवार रजिस्टर में दर्ज है उन्हें ही विस्थापित माना जा रहा है। यदि उसके अन्य पुत्र एवं पुत्रियां हैं तो उन्हें इस दर्जे से महरूम रखा जा रहा है। पुनर्वास एवं पुनस्र्थापन योजना के अनुसार बांध प्रबंधन ने एनजीटी द्वारा गठित समिति को दिए लिखित ब्यान में गृहविहीन परिवारों को लोक निर्माण विभाग द्वारा आंकलन रिपोर्ट के अनुसार ढाई सौ वर्ग मीटर प्लॉट के लिए दी जाने वाली राशि को भी लोक निर्माण विभाग की दरों के अनुसार मकान के कुल आंकलित मूल्य का 50 प्रतिशत मुआवजा अलग से दिया जाए। समिति ने मांग करते हुए कहा कि बांध निर्माण के उपरांत रेणुका -संगड़ाह हरिपुरधार मार्ग की दूरी करीब 14 किलोमीटर बढ़ जाएगी इसकी दूरी कम करने के लिए मोहतू एवं चमयाणा गांव के बीच पुल बनाया जाए। ताकि शिमला व रेणुका जी क्षेत्र के हजारों लोगों को इसका लाभ मिल सके साथ साथ पुर्ण रुप से विस्थापित होने वाले परिवार के एक सदस्य को प्राथमिकता के आधार पर सरकारी नौकरी प्रदान की जाए तथा विस्थापितों के लिए विशेष कोटा निर्धारित किया जाए ताकि विस्थापित होने वाले परिवार आत्मनिर्भर हो सके। यही नही
बांध निर्माण कार्य आरंभ होने से पूर्व प्रत्येक परिवार को 5 बीघा कृषि योग्य भूमि प्रदान कर उनका उचित पुर्नस्थापन बांध कार्य आरंभ होने से पूर्व किया जाना चाहिए ना कि एक किलोमीटर दायरे में रहने वाले परिवारों का । जो परिवार दूसरों की जमीन पर काश्तकारी कर रहे हैं या वन भूमि में कई पुशतों से रह रहे हैं उन्हें भी पूर्ण विस्थापित का दर्जा प्रदान किया जाए। विस्थापितों के पुनर्वास के लिए अभी तक कहीं पर भी भूमि का चयन नहीं किया गया है विस्थापित मांग करते हैं कि उन्हें किसी बड़े शहर चंडीगढ़ के समीप कॉलोनी बनाकर बसाया जाए। डूब क्षेत्र में रह रहे विस्थापित परिवारों की विद्युत उत्पादन में उनकी हिस्सेदारी के साथ उन्हें शेयर होल्डर बनाए जाने की मांग की गई है। विस्थापितों के लिए 4 स्थानों पर खरीदी गई भूमि कृषि योग्य नहीं है। संघर्ष समिति द्वारा इसे निरस्त किए जाने के उपरांत सतर्कता विभाग उसकी जांच कर रहा है। जब भी पुनस्र्थापन हो तो विस्थापित परिवारों को गांव के हिसाब से एक ही स्थान पर बसाया जाए।
- इस आंकलन से अधिक तर विस्थापितों को क ोई फायदा होने वाला नही है। नया सर्वे कराए जाने की मांग की गई है। पेडों दुबारा गिनती की जाए। उम्मीद है कि विस्थापितों के दर्द को समझते हुए हमारी मांगों को पूरा किया जाएगा।
- योगेंद्र कपिला, अध्यक्ष बांध संर्घष समिति