नाहन नगीना: यहां सरकारी स्तर पर संस्कृति कार्यक्रम आयोजित न करने की रिवायत.. दशकों बीत गए..जानिये ऐसा क्यों हुआ.. अरुण साथी

अक्स न्यूज लाइन नाहन 27 अगस्त : हिमाचल प्रदेश के 12 जिला मुख्यालयों में नाहन ही ऐसा जिला मुख्यालय है जो सरकारी स्तर पर अनदेखी का शिकार आज भी बना है। आजादी के बाद अभी तक कोई सरकार द्वारा आयोजित कोई जिला स्तरीय संस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन नही किया जाता है।
सूबे अन्य 11 जिला मुख्यालयों पर नजर डालें तो सबकी अपनी विरासत, अपनी संस्कृति, अपनी पहचान है सरकारी दर्जा प्राप्त अपने अपने आयोजन है। इन सिरमौर के इलावा अन्य जिलों के सियासी नेताओं में दम था और आज भी तभी तो वहां विरासत जिंदा है। संस्कृति का सरंक्षण हुआ। लेकिन शहर में ऐसे कई धार्मिकआयोजन अलग से हो रहे है एक संस्था पिछले कई साल से सिरमौर उत्सव का आयोजन कर रही है लेकिन।सब अपने स्तर पर सरकार का कोई रोल नही है।
नाहन शहर के सभी दलों के नेता किस स्तर की सियासत करते हैं और तथाकथित विकास का राग अलापने में पीछे नहीं रहे यह सब जग जाहिर है। शहर की कभी समृद्ध रही विरासत, संस्कृति को संरक्षण दिलवाना इन नेताओं की समझ से परे रहा है।अपनी विरासत, अपनी परंपराओं व सांस्कृतिक की बचाने के लिए यहां की उन संस्थाओं को लामबन्द होना चाहिए ताकि सरकार और यहां के वोट बटोरने वाले नेताओं दबाव बनाया जा सके।
अपने स्तर पर कु छ आयोजनों करने वाले कलाक ारों ने रोष प्रकट किया कि जिला सिरमौर का मुख्यालय नाहन एक ऐसा स्थल है जहां सरकारी स्तर पर एक भी सांस्कृतिक समारोह आयोजित नहीं होता। न ही यहां के प्राचीन मेलों को सरकारी स्तर पर मनाया जाता है। आजादी के बाद भी प्रदेश की सरकारों ने यहां के किसी भी धार्मिक समारोह या फिर सांस्कृतिक समारोह को सरकारी स्तर पर मनाने की घोषणा नहीं की। प्रदेश के अन्य तमाम जिला मुख्यालयों में कोई न कोई समारोह सरकारी स्तर पर आयोजित होता है। यहां की सभी पार्टियों व नेताओं ने बस विकास के नाम पर संस्कृति के नाम पर बस वोट बटोरे हैं। आलम यह है कि आज भी न जनता जागी है और न वोट लेने वाले नेता।
क रीब 25 साल पहले अन्य जिलों की तर्ज पर नाहन में सिरमौर उत्सव की शुरूआत सरकारी स्तर पर शुरू हुई थी। यह सोच कर कि यह उत्सव कला एवं संस्कृति का दोहन करेगा व नए कलाकारों को मंच मिलेगा। गांव की प्रतिभाएं अपना कौशल दिखाएंगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ और कुछ कारणों से यह उत्सव बंद हो गया। यूं भी जिला मुख्यालय में सरकारी स्तर पर किसी भी सांस्कृतिक एवं धार्मिक कार्यक्रम के आयोजन को लेकर अफसरशाही हमेशा कन्नी काटती रही है क्योंकि अफसरशाही को ऐसे कार्यक्रम आयोजित करने के लिए लाखों रुपए का बजट जुटाना होता है। अफसरशाही के लिए अंतर्राष्ट्रीय मेला श्री रेणुका, सराहंा का वामन मेला व यमुना शरद महोत्सव शायद पहली प्राथमिकता है।
वामन द्वादशी मेला व दशहरा उत्सव हैं प्रमुख
सदियों पुराने वामन द्वादशी मेले व दशहरा उत्सव को सरकारी स्तर पर मनाया जा सकता है। दशहरा उत्सव को रियासत काल में शानो शौकत से आयोजित किया जाता था। फिलहाल तो दशहरा उत्सव के नाम पर नगर परिषद आतिशबाजी का आयोजन कर अपनी जिम्मेदारी पूरी करती रही है। दशहरा उत्सव में आज भी हजारों लोग उमड़ते हैं। वामन द्वादशी मेला भी पुराने ढर्रे पर चल रहा है।
उधर सैकड़ों साल पुराने रियासत काल के दो मेले छडिय़ों का व वामन द्वादशी मेला आयोजन के नाम पर रस्म अदायगी रह गया है। बस भीड़ जुट जाती है या भक्त चले आते है। सालों से आलम यह हो कि इन मेलों को लेकर न प्रशासन की कोई जवाबदेही है और न ही आयोजकों। नगर परिषद के लिए दोनों मेले आमदनी का जरिया बने दुकानदारों पर्ची काटो बस हो गये मेले।
शाही परिवार के सदस्य एंव पूर्व विधायक अजय बहादुर सिंह ने कहा कि यह सही है कि हम लोग अपनी प्राचीन विरासत संभालने में नाकाम रहे हैं। सरकार को कम से कम एक आयोजन जिला मुख्यालय में अपने स्तर पर आयोजित करना चाहिए था। यहां के दशहरा उत्सव या फिर वामन द्वादशी मेले को जिला स्तरीय घोषित किया जाना चाहिए। संस्थाएं आगे आएंए प्रपोजल दें और हम सरकार से जिला मुख्यालय के लिए मांग करेंगे।