आंबेडकर भारत के सर्वाधिक यशस्वी सपूतों में से एक........ ...डा.राजीव बिंदल
भारत रत्न डा.भीमराव रामाजी आंबेडकर भारत के सर्वाधिक यशस्वी सपूतों में से एक हैं।
वे भारत के सामाजिक, राजनीतिक मंच पर 1920 के दशक के प्रारंभ में प्रकट हुए और ब्रिटिश राज के अंत तक भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक कायाकल्प के अग्रस्थान में रहे। सन् 1947 में स्वतंत्रता के बाद से सन् 1956 में मृत्युपर्यंत आधुनिकभारत की नींव रखने में डॉ. भीमराव आंबेडकर ने महत्वपूर्ण एवं अनूठी भूमिका निभाई।
डा. आंबेडकर का जीवन एक अविश्वसनीय आख्यान है, एक अस्पृश्य बालक, बचपन से जवानी तक कदम-कदम पर अपमानित होता है, सभी विवशताओं को पार करते हुए वैश्विक स्तर के विश्वविद्यालयों से उच्चतम् डिग्रियां प्राप्त करता है। इसके बाद वे अपना जीवन अन्यायपूर्ण एवं मानव अधिकारों से वंचित जातिवद्ध पुरानी सामाजिक व्यवस्था के विनाश हेतु समर्पित कर देते हैं। परिवार के किसी सौभाग्य या किसी राजनीतिक वंशावली के बिना ही केवल कमरतोड़ मेहनत, दृढनिश्चिय,उच्चतम साहस एवं स्वार्थरहित बलिदान के बल पर, जबरदस्त राजनीतिक विरोध तथा सामाजिक भेदभाव पर विजय पाते हुए वे स्वतंत्र भारत के संविधान के प्रधान निर्माता बन जाते हैं।
तदोपरान्त वो इस सकारात्मक कार्य के लिए रक्षाकवच बनाने के उद्देश्य से एक अधिक न्याययुक्त समाज, जो लाखों-करोडों दलित लोगों को सामाजिक न्याय दे सके, उसकी स्थापना के कार्य में लग जाते हैं। और इस प्रकार सामाजिक न्याय एवं तार्किकता पर आधारित एकनए भारत निर्माण की बुनियाद रखते हैं। इस प्रक्रिया में वे भारतीय गणतंत्र के साहसी रक्षक बन आधुनिक भारत के सज प्रहरी भी बनते हैं।
इस पृश्ठभूमि में स्पष्ट करना चाहता हूं कि यह भारी अन्याय होगा यदि उन्हें केवल दलितों के नेता के रूप में पहचाना जाए, जैसा कि अकसर जिम्मेदार लोगों के द्वारा भी किया जाता है। डा. आंबेडकर सिर्फ एक दलित नेता या भारत के शोषित लोगों के ही नेता नहीं थे, वे एक राष्ट्रीय नेता थे। उनकी विद्वता, उनका जन आंदोलन, सरकार और उसके बाहर उनकी भूमिका दिखाती है कि उनका राष्ट्रवाद का ब्रांड उन लोगों से बिल्कुल अलग था जो ब्रिटिश शासन से भारत की स्वतन्त्रता की लडाई लड़ रहे थे। डा. आंबेडकर का राष्ट्रवाद केवल भारतीयों को सत्ता हस्तांतरण तक सीमित नहीं था, अपितु राष्ट्र के पुननिर्माण का कार्य अर्थात् यह सामाजिक समानता और सांस्कृतिक एकता के जरिए युगों पुरानी जातिग्रस्त, अन्यायपूर्ण भेदभाव युक्त सामाजिक व्यवस्था को छोड़कर लोकतांत्रिक गणराज्य का निर्माण था।
समाज के नेतृत्वकर्ता के रूप में बाबा साहेब अतुलनीय हैं तो अपने अर्जित गुणों के कारण जिज्ञासा, अध्ययनशीलता और समस्याओं से जूझने के कारण विकारों से दूर रहते हुए समाज की चिंताओं में स्वर मिलाने वाला व्यक्तित्व कैसा प्रखर नेतृत्व दे सकता है, इसके वह उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
हम केवल 150 साल तक गुलाम रहे पंडित नेहरू जी की यह मान्यता बाबासाहेब को स्वीकार नहीं थी। वह मानते थे कि भारत शताब्दियों बाद स्वाधीन हुआ है तो इस स्वराज्य की रक्षा हर नागरिक का प्रथम कर्तव्य है। इस राष्ट्र हितकारी सोच के साथ समाज का नेतृत्व करते डा. आंबेडकर इस देश के रक्षा कवच प्रतीत होते हैं।