मुख्य सचिव ने दिया न्यायालयीन मामलों के प्रबंधन में सुधार हेतु कानूनी समाधान खोजने पर बल

मुख्य सचिव ‘निर्माण भवन’ में आयोजित लोक निर्माण विभाग की एक दिवसीय कार्यशाला की अध्यक्षता कर रहे थे, जिसका उद्देश्य न्यायालयीन मामलों के प्रबंधन में क्षमता वृद्धि और सुधार करना था।
प्रबोध सक्सेना ने अधिकारियों को अन्य राज्यों के लोक निर्माण विभागों से संवाद स्थापित कर उनके अनुभवों और सफल रणनीतियों को जानने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि केवल मध्यस्थता पर ध्यान केंद्रित करना पर्याप्त नहीं। प्रत्येक मामले को गंभीरता और उत्तरदायित्व के साथ निपटाया जाना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि कार्यशाला के अंत में कुछ ठोस और व्यावहारिक समाधान सामने आने चाहिए, जिनकी आगामी समय में निगरानी की जा सके।
मुख्य सचिव ने मामलों के निपटारे में देरी को कम करने और प्रक्रियाओं को सरल बनाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि दीर्घकालिक मामलों के समाधान के लिए विधायी उपाय भी एक प्रभावी विकल्प हो सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जैसे-जैसे लोगों में कानूनी अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ रही है, न्यायालयों में मामलों की संख्या में भी तीव्र वृद्धि हुई है। ‘‘आज लोग अपने संवैधानिक अधिकारों के प्रति अधिक सजग और जानकार हो गए हैं, जिससे न्यायिक कार्यवाहियों में वृद्धि हुई है। ऐसे में व्यवस्था को अधिक सक्षम और तैयार किया जाना आवश्यक है,’’ उन्होंने कहा।
सचिव, लोक निर्माण विभाग डॉ. अभिषेक जैन ने उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों और प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा कि आज की कार्यशाला का उद्देश्य न्यायालयीन मामलों के निपटारे की प्रक्रिया में आई विसंगतियों को कम करने के उपायों पर मंथन करना है। उन्होंने बताया कि कार्यशाला का केंद्र बिंदु ज्ञान एवं कौशल उन्नयन तथा अधिकारियों को व्यावहारिक सहायता प्रदान करना है। उन्होंने कहा कि अब तक निपटाए जा चुके और लंबित भूमि अधिग्रहण मामलों के कारण विभाग पर लगभग 300 करोड़ रुपये की वित्तीय देनदारी बन चुकी है, जबकि सभी लंबित मामलों को शामिल करने पर यह देनदारी 1,000 करोड़ रुपये तक पहुंच सकती है। उन्होंने समयबद्ध कार्य निष्पादन के लिए फाइलों की दोहराव से बचने और वित्तीय, अनुपालन तथा प्रशासनिक लागत को घटाने की आवश्यकता पर बल दिया।
प्रधान सचिव (विधि) शरद कुमार लगवाल ने विभाग के समक्ष न्यायालयीन मामलों की प्रकृति पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि राज्य का यह संवैधानिक दायित्व है कि वह नागरिकों की भूमि की रक्षा करे। भूमि अधिग्रहण करते समय यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह भूमि सभी अड़चनों से मुक्त हो और भूमि का हस्तांतरण विधिसम्मत तरीके से किया जाए।
विशेष सचिव, लोक निर्माण विभाग हरबंस सिंह ब्रसकोन ने राज्य में न्यायालयीन मामलों की वर्तमान स्थिति पर एक प्रस्तुति दी। उन्होंने बताया कि विभाग सड़कों, पुलों और भवनों की योजना, निर्माण और रख-रखाव के कार्यों में संलग्न है। उन्होंने निजी भूमि पर सड़क निर्माण, राजस्व अभिलेखों में सड़क प्रविष्टियों की कमी और निजी भूमि के मुआवजे को लेकर दायर मुकद्दमें आदि प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डाला। वर्तमान में प्रदेशभर में ऐसे लगभग 1,600 मामले विभिन्न न्यायालयों में लंबित हैं। इस अवसर पर अन्य प्रमुख वक्ताओं में सेवानिवृत्त प्रधान सचिव (विधि) जे.एन. बारोवालिया और एचपीपीडब्ल्यूडी के जिला न्यायवादी जगदीश राजटा शामिल रहे।
दोपहर बाद के सत्र में दो पैनल चर्चाएं आयोजित की गईं। पहली चर्चा में एसई मध्यस्थता सर्कल सोलन, एसई 12वां सर्कल नाहन, एसई पहला सर्कल मंडी और एसई 7वां सर्कल डलहौजी ने मध्यस्थता मामलों में विभाग को आने वाली चुनौतियों और समाधान पर विचार साझा किए। दूसरी चर्चा में दक्षिण जोन, मंडी जोन, कांगड़ा जोन और नेशनल हाईवे के मुख्य अभियंताओं ने न्यायालयीन मामलों से जुड़ी चुनौतियों और व्यवहारिक समाधान प्रस्तुत किए।
इस अवसर पर हिमाचल प्रदेश के महाधिवक्ता अनूप रतन ने मुकद्दमों की प्रभावी प्रबंधन प्रणाली विकसित किये जाने पर बल देते हुए सुझाव दिया कि न्यायालयों में प्रस्तुत किए जाने वाले जवाब मुख्यालय स्तर पर तैयार किए जाने चाहिए ताकि मुकद्दमों की पैरवी उचित समय पर और प्रभावी ढंग से सम्पन्न की जा सके। उन्होंने कहा कि विभागीय निर्णय उचित तर्कों पर आधारित होने चाहिए। उन्होंने भूमि अधिग्रहण से जुड़े मामलों पर चर्चा करते हुए जोर दिया कि विभाग के अभियंताओं को मध्यस्थता अधिनियम का अध्ययन अवश्य करना चाहिए। उन्होंने प्रतिभागियों को सहभागिता प्रमाण-पत्र वितरित किए।
कार्यशाला के अंत में मुख्य अभियंता (प्रोजेक्ट्स), एचपीपीडब्ल्यूडी, सुरिंदर पाल जगोटा ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया।