महर्षि मार्कण्डेय जी की अमर तपोस्थली तथा मारकण्डा नदी का उद्गम स्थल जोगीबन

महर्षि मार्कण्डेय जी की अमर तपोस्थली तथा मारकण्डा नदी का उद्गम स्थल जोगीबन

अक्स न्यूज लाइन नाहन (पंडित सुभाष शर्मा जी)  21 जुलाई : 


श्रावण मास के दुसरे सोमवार को महर्षि मार्कण्डेय जी की अमर तपोस्थली तथा मारकण्डा नदी का उद्गम स्थल जोगी बन (बोहलियों) का आलौकिक दृश्य। यह स्थान अम्बाला -हरिद्वार राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर नाहन से लगभग सत्रह किलोमीटर दूर स्थित है। यहां महर्षि मार्कण्डेय ने अमरता प्राप्त करने के लिए शिवलिंग को अपनी बाहों में भर लिया था जिससे भगवान शिव ने साक्षात प्रकट होकर उन्हें सदा सदा के लिए अमर कर सप्त चिरंजीवियों से अष्टम चिरन्जीवी बना दिया था। यहां से महर्षि मार्कण्डेय जल की अमर धारा में परिवर्तित होकर मारकण्डा नदी के रूप में अमर हो गए।

महर्षि मार्कण्डेय का जन्म हरियाणा के कैथल जिला के कलायत के मटौर में खण्डाल्वा में हुआ। उनकी माता का मनसिवनी देवी तथा पिता का नाम ऋषि मृकण्डु बताया गया है । इस दम्पति के काफी समय तक कोई सन्तान नहीं हुई जिससे इन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए विष्णु नारायण की घोर तपस्या की। भगवान नारायण ने इन्हें आलौकिक पुत्र का वरदान दिया जिसकी आयु तत्कालीन ब्रह्मा के बारह वर्ष थी।बालक का नाम मार्कण्डेय रखा गया तथा उन्हें अपनी अल्पायु का ज्ञान था। दस वर्ष की आयु में वह भगवान शिव की तपस्या के लिए घर से निकाल पड़े। हिमाचल के बिलासपुर में जुखाला, शिवालिक पर्वतमाला के सतकुम्भा , पौड़ी वाला,ढिमकी तथा यहां से कटासन पहुंचे तथा इनकी तपस्या के फलस्वरूप माता यहां प्रकट हुई जिसे वर्तमान में कटासन माता मंदिर के नाम से जाना जाता है। वहां महर्षि मार्कण्डेय ने अपना घंटा तथा आसन छोड़ दिया तथा स्वयं जोगी बन आकर शिव की तपस्या में लीन हो गए। यहीं पर उन्होंने मार्कण्डेय पुराण की रचना की।

श्री दुर्गा सप्तशती उसी मार्कण्डेय पुराण का ही एक अंश है।यहीं पर इनकी आयु के बारह वर्ष पूरे होने वाले थे तथा महर्षि मार्कण्डेय लगातार शिव के महामृत्युंजय महामंत्र का जाप कर रहे थे। जैसे ही यमराज उन्हें अपने साथ लेने आए तो उन्होंने शिव लिंग को अपनी बाहों में भर लिया तथा भगवान शंकर वहां प्रकट हुए। उन्होंने महर्षि मार्कण्डेय को अमरता का वरदान दे दिया। महर्षि मार्कण्डेय की पत्नी का धूम्रमति तथा पुत्र का नाम ऋषि वेदशिरा बताया गया है।भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के  31 दिसम्बर 1966 के अनुसार सरस्वती महानदी का उद्गम स्थली भी यही स्थान बताया गया है।वर्तमान में इस स्थान का नवनिर्माण कार्य ऋषि मार्कण्डेश्वर धाम जोगी बन द्वारा किया जाता है। स्वामी तीर्थानन्द बताते हैं कि पिछले चौबीस सालों से यहां पांच दिवसीय पांच कुण्डीय महायज्ञ का अनुष्ठान किया जाता है जिसमें भारी संख्या में श्रद्धालु बढ़ चढ़ कर भाग लेते हैं। हर वर्ष बसन्त पंचमी के पावन अवसर पर इस महायज्ञ की पूर्णाहुति होती है। भगवान शंकर एवं महर्षि मार्कण्डेय जी यहां आने वाले हर श्रद्धालु की मनोकामना पूर्ण करते हैं।