अमेरिका में कामकाजी महिलाओं को भी अपने घर का दो तिहाई काम करना पड़ता है

अमेरिका में कामकाजी महिलाओं को भी अपने घर का दो तिहाई काम करना पड़ता है

इस मामले में  जेंडर समानता     1985 के बाद स्थिति नहीं बदली है 

केट मेनजिनो

अमेरिका में पिछले कुछ महीने से नौकरियों में क्वाइट क्विटिंग की चर्चा चल रही है। इस पर अमल करने वाले कामगार जॉब कांट्रेक्ट में तय घंटों के बराबर या केवल जरूरी और निर्धारित काम का निपटारा करते हैं। महामारी की ऊब और नियोक्ता की अवास्तविक उम्मीदों से थके कामगारों के एक वर्ग ने यह रास्ता निकाला है।
रिसर्च से पता लगा है कि महिला-पुरुष के कामकाजी होने की स्थिति में भी घर का दो तिहाई काम महिला को ही करना पड़ता है। आंकड़े बताते हैं कि अमेरिका में 1985
के बाद से इस स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं हुआ। दो तिहाई असंतुलन औसतन है। कुछ जगह तो स्थिति और खराब है।
महिलाएं सवाल करती हैं कि हम अपने घर में स्थिति कैसे बदल सकती हैं। मेरा पार्टनर तो समझौता नहीं करेगा। मैं टूटन की कगार पर पहुंच चुकी हूं। फिर मैं क्या करूं? वैसे, घर का दो तिहाई काम करने वाली महिला पर इसकी जिम्मेदारी डालना वाजिब नहीं होगा। आदर्श स्थिति होगी कि एक तिहाई काम करने वाले पुरुष आगे आकर पहल करें। लेकिन हकीकत ऐसी
नहीं है। लिहाजा सवाल है कि क्या घर में भी क्वाइट क्विटिंग जैसा कुछ किया जाना चाहिए? पहले हमें देखना होगा कि घर में • कौन से काम जरूरी हैं जैसे कुकिंग, सफाई, कपड़ों की धुलाई वगैरह। अगर घर में छोटे बच्चे हैं या परिवार का कोई सदस्य बीमार है। तो हम इन जरूरी कामों को रोक नहीं सकते हैं। वैसे सभी काम करने वाली महिलाएं जानती हैं कि शारीरिक श्रम का बोझ तो केवल आधा रहता है।

सबसे महत्वपूर्ण तो संवेदनाओं से जुड़े मसले हैं। 
कुछ अदृश्य काम अधिक बोझ डालते हैं। तनाव पैदा करते हैं। उदाहरण के लिए बच्चों की देखभाल, उनकी सेहत पर नजर रखने जैसे काम जरूरी हैं। इन्हें रोकना और टालना संभव नहीं है। ऐसी स्थिति में परिवार के दूसरे लोगों को सहयोग करने के लिए कहा जाए। फिर भी, घर में क्वाइट क्विटिंग से घरेलू कामकाज में चल रहे असंतुलन के प्रभाव पर बहस तो शुरू होगी। भास्कर से सभार: