महिलाओं का भूमि पर अधिकार और जमीनों से बेदखली के सवाल पर - सन्तोष कपूर

अक्स न्यूज लाइन नाहन 14 अक्टूबर :
साथियों पूरे देश की तरह हिमाचल में भी पितृसत्तात्मक व्यवस्था के चलते समाज में महिलाओं का दोयम स्थान है इसलिए समझ में महिलाओं के अन्य अधिकारों की तरह जमीनों के अधिकार में भी महिलाओं को सबसे बाद या सबके मरने के बाद संपत्ति में उसका अधिकार मिलता है और कभी-कभी तो जमीन पर अधिकार पति के मरने के बाद भी नहीं मिलता क्यों क्योंकि जब तक पति जमीन का मालिक नहीं होगा तब तक उसके अधिकार संपत्ति पर उसकी पत्नी को नहीं मिल सकते! ऐसे उदाहरण हमें तब मिलते हैं जब घरेलू हिंसा कानून के तहत महिलाएं जमीन पर या घरों पर अधिकार लेने की मांग करती है परंतु क्योंकि पति के नाम जमीन नहीं है तो इसलिए उसकी पत्नी को वहां अधिकार नहीं मिल पा रहे हैं कई जगह तो ऐसे भी उदाहरण सामने आते हैं जब बहु को जमीन पर अधिकार या घर पर अधिकार न देना पड़े उसके लिए ससुराल वाले अपने बेटे को ही जमीन से बेदखल कर देते हैं ताकि संपत्ति में बहू को अधिकार न देना पड़े समाज कल्याण विभाग के अंदर कई बार ऐसे कैस देखने में सामने आए हैं जब विधवा बहू को मकान की स्कीम योजना के तहत घर बनाने के लिए पैसा आता है परंतु बहू के नाम जमीन न होने के कारण विधवा महिला वह मकान नहीं बन पा रही है क्यों क्योंकि ससुर जमीन बहू के नाम नहीं कर रहे हैं! और उन एक कल महिलाओं को या विधवा महिलाओं को अपने घर में जमीन न होने के कारण उसे स्कीम से भी वंचित होना पड़ रहा है ऐसे उदाहरण समाज कल्याण विभाग और अन्य विभागों की योजनाओं के क्रियान्वयन के समय में सामने आते रहते हैं इसके कई उदाहरण है तथा घरेलू हिंसा कानून के अंदर जब महिलाएं घर में आश्रय की मांग करती है तथा जमीन में काम करने के लिए अधिकार मांगती है तो वहां पर उसे जमीन से वंचित कर दिया जाता है क्योंकि अभी पति के नाम संपत्ति या जमीन है ही नहीं इसलिए पति को ही कागजों में बेदखल कर दिया जाता है कई जगह तो कई जगह तो न्यायालय से महिलाओं को जहां घरों में आश्रय दिए गए हैं वहां के बिजली कनेक्शन तक ससुराल पक्ष द्वारा काट दिए जाते हैं और महिला को घर से बाहर निकाल कर परेशान किया जाता है! भारत में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 संशोधित 2005 के तहत बेटियों को भी बेटों के बराबर पैतृक संपत्ति में जन्म से ही अधिकार मिलता हैं! परंतु इस कानून की सच्चाई यह है कि इसके तहत आज तक एक या दो प्रतिशत महिलाएं ही जमीन में हिस्सा ले पा रही है! पैतृक संपत्ति में महिलाएं हक़ या जमीन का उपयोग और उपभोग नहीं कर पाती है! कई बार तो बेटियों को पैतृक संपत्ति से पिता द्वारा वसियत बना कर पहले ही बेदखल कर दिया जाता है ताकि आने वाले समय में उतराधिकारीयों के बीच किसी भी तरह की कोई सहमति या असहमति की कोई गुंजाइश ही न रहे यह गैर बराबरी वाले समाज में आम बात है और अगर कोई बहन या बेटी ने अपने पैतृक संपत्ति पर अपने बुरे समय में थोड़ी जगह पर मकान बना लिया या लोन ले लिया तो उसके बचपन के और माइके के सारे रिश्ते खत्म हो जाते हैं!क्योंकि उनका जीवन किसी अन्य जगहों पर व्यतीत होता है! और पूरा जीवन पति के घर पर उनकी संपत्ति को बनाने और संवारने में लगा देती है! परन्तु बुढ़ापे तक उस जमीन पर लोन तक नहीं ले सकती पूरी जिंदगी बंधवा मजदूर की तरह काम करती है परंतु निर्णय नहीं ले सकती दादा या दादा ससुर के नाम संपत्ति हैं मां,सास या बहु को कभी भी बाहर निकाल सकते हैं या जहां जमीनों के अधिग्रहण के मामले सामने आए आ रहें हैं वहां पर भूमि अधिग्रहण में महिलाओं और आश्रितों को न मुआवजा मिल पा रहा है और न उनके भविष्य के लिए पुश्तैनी जमीन के अधिकार बच रहे हैं ऐसे में चाहे घरेलू हिंसा कानून में मिलने वाले अधिकार है उन सभी से आश्रितों को वंचित रहना पड़ रहा है! और जो भूमि के मालिक हैं उनको मुआवजा मिलेगा और मुआवजा धारी अपनी धनराशि को कैसे उपयोग करेगा यह बात उस पर निर्भर करती है नई संपत्ति भी बनाएंगा तो उस पर भी पुश्तैनी अधिकार का दावा नहीं किया जा सकता! 1956 हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत हिस्सा मिलता है यह पति की मृत्यु के बाद अगर भूमि का मालिक पति है तभी पत्नी को उसके भूमि पर अधिकार मिलेगा! या पश्चिम बंगाल में कामरेड ज्योति वसु सी पी आई एम की सरकार द्वारा वहां की तीन लाख से ज्यादा महिलाओं को जमीनों में संयुक्त पट्टे देकर महिलाओं को जमीनों में संपत्ति का अधिकार कानूनी रुप से दे कर वामपंथी सरकार की महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता तथा राजनैतिक इच्छाशक्ति दिखाई!हम मांग करते हैं कि शादी के तुरंत बाद महिलाओं को जमीनों में संयुक्त पट्टे देना सुनिश्चित किया जाए ! ताकि महिलाएं उस जमीन पर अपने गुजर बसर के लिए भी कार्य कर पाएं! वहीं दुसरी तरफ प्रदेश में सरकार और हाई कोर्ट द्वारा जमीनों से किसानों की बेदखली की एक ऐसी आपात स्थिति बना दी है कि पुश्तों से जमीनों पर रहे रहे लोगों को बेदखल करने तथा ताला बन्दी करवाकर प्रदेश में पिछली भाजपा सरकार तथा वर्तमान कांग्रेस सरकार की जनता तथा किसानों के प्रति असंवेदनशीलता को दिखाता है वर्ष 2001-2002के बाद दोनों दलों की सरकारें सत्ता में रही धुमल सरकार ने किसानों से शपथपत्र लिए उसके बाद भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों की सरकारें बनी परंतु किसानों की जमीनों नियमित करने के लिए कानून बनाने संवेदनशीलता नहीं दिखाई और लाखों किसानों के कोई पैरवी न करके उनके साथ अन्याय करते रहे हैं तथा जनता को दोनों पार्टियों ने दिखा दिया कि उनकी राजनैतिक इच्छाशक्ति न होने के कारण आज किसानों को अपनी ही जमीनों से बेदखली की जा रही है है! वहीं दूसरी तरफ वर्ष 2005-2006का वनाधिकार कानून को प्रदेश में सख्ती से लागू न करके तथा प्रशासनिक और राजनैतिक इच्छाशक्ति न होने के कारण वनाधिकार कानून से लोगों के अधिकार बहाल किए जा सकते थे परन्तु वर्तमान सरकारों ने इस कानून को गम्भीरता लागू नहीं करवाया और न ही इसके प्रति जनता को जागरूक किया और कमेटीयों को भी जागरूक नहीं किया जिस कारण आज प्रदेश में 2006यूपीए-1,सरकार में बने कानून से कोई व्यक्तिगत दावेदारों को लाभ नहीं दिलाया जा सका!हमारा सम्मेलन वनाधिकार कानून को सख्ती से लागू करने की मांग करता है!वहीं प्रदेश में 1980के वन संरक्षण कानून के तहत प्रदेश की सारी जमीनों के मालिक केन्द्र सरकार तथा वन विभाग बन गया है जिस कारण हिमाचल प्रदेश सरकार एक ऐसी सरकार है जिसके पास जमीन में हिस्सा नहीं है अगर वह अपनी जनता को जमीन देना भी चाहेंगे तब नहीं दे सकते और प्रदेश में जिस तरह से प्राकृतिक आपदा में लोगों की जमीनें तथा घर जा रहें हैं तो उनके पूनर् स्थापनाओं के लिए जमीन नहीं दे सकतीं इसलिए हम मांग करते हैं कि वनसंरक्षण कानून 1980में संशोधन किया जाए! तथा लोगों को जमीन के बदले जमीन मुहैया करवाई जाए!मांगे:-1.शादी के बाद महिलाओं को जमीनों में संयुक्त पट्टे के रूप में दर्ज किया जाए!2.भूमि अधिग्रहण के समय मुआवजे में सभी काबिज़ परिवारों और आश्रितों को मुआवजा राशि देनी सुनिश्चित की जाए!3.एकल तथा विधावा या घरेलू हिंसा कानून की अधिकारी महिलाओं के लिए मकानों की योजनाओं और संपत्ति में अधिकार को प्राथमिकता दी जाए तथा जहां विधवा बहू को जमीन में पति की संपत्ति नहीं मिली है उसको पुश्तैनी जमीन से अधिकार दिलाना सुनिश्चित किया जाए!3.किसानों की जमीनों से बेदखली पर रोक लगाई जाए तथा जमीनों पर अधिकारों के नीति लाई जाए !4.वनाधिकारकानून 2006को सख्ती से लागू किया जाए!5.वन संरंक्षण कानून 1980में संशोधन किया जाए तथा आपदा प्रभावितों को जमीन के बदले जमीन देनी सुनिश्चित की जाए!"यह विडम्बना है कि महिलाएं वंश चलाने के लिए चाहिए एक बच्चे पैदा नहीं कर पाई तो दुसरी ले आओ बहु पत्नी प्रथा को चलाओ और संपत्ति के लिए वारिस पैदा करो!वहीं संपत्ति न बंटे तो महिलाओं के शरीर को बांट दो बहु पति प्रथा के नाम महिलाओं इस्तेमाल किया जा रहा है!" "उसके नाम कभी दो इंच जमीन भी नहीं मिली"