संकल्प न लेने का दिन व्यंग्य : प्रभात कुमार

संकल्प न लेने का दिन   व्यंग्य : प्रभात कुमार


नया साल धूमधाम से पधारने और पुराना चुपचाप खिसक जाने के बीच कितने ही संकल्प, इधर उधर होते रहते हैं।
सोच रहा था कि अगले साल के हर महीने के लिए एक संकल्प तो लेकर रहूंगा मगर सभी किंतु, परंतु और
कदाचित में फंसे रह गए । दिसंबर महीने की शुरुआत से मन ही मन ठान रहा था, चाहे जितनी सर्दी हो जाए,
पुराने संकल्पों को भी अगले बरस पूरी गर्म जोशी के साथ, एक मिशन की तरह लूँगा। फिर आज सुबह, संजीदगी से
बैठकर अदरक, तुलसी व काली मिर्च के छौंक से बनी गर्मागर्म चाय पीकर विचार किया तो दिल ने समझाया,
पुराने सारे संकल्प तो शर्म के मारे डूब चुके हैं कुछ नया तैराओ। कृत्रिम बुद्धि में कैद होती जा रही, महाडिजिटल
हो चुकी दुनिया के लिए भी कुछ प्राकृतिक करो । नए साल का नैतिक कर्तव्य है कि हर दिशा में, सभी क्षेत्रों में
बहुत कुछ करने के लिए प्रेरित करे । नववर्ष में संभावित संकल्प पहनने के लिए, साल के पहले दिन से बेहतर
शुरुआत नहीं हो सकती । यह दिन रविवार हो तो सोने पर खूब सारा सुहागा। इस दिन घर से बाहर की दुनिया में,
रिकार्ड जमाने वाला कोहरा फैला हो तो संकल्प लेने का उचित माहौल स्वत बन जाता है। रजाई में ही बैठकर
पिछले सालों में गहरे डूब चुके संकल्पों को भुलाकर नए संकल्प तैराने बारे सोच सकते हैं। सामाजिक, राजनीतिक,
धार्मिक और आर्थिक नेताओं द्वारा दिमाग से पूरे किए जा रहे संकल्पों की तारीफ़ कर प्रेरणा ले सकते हैं । अपने
संकल्प पूरे करने के लिए संजीदा हों न हों लेकिन बच्चों, पत्नी और मित्रों को नए संकल्प लेने बारे उपदेश दे सकते
हैं । उन दर्जनों लोगों से सीख सकते हैं जो रात दिन एक कर, संकल्पों के आधार पर पूरी दुनिया में नाम कमा रहे
हैं । बहुत गहरी संजीदगी से अवलोकन किया जाए तो नए संकल्पों के आधार पर, खुद को सुधारने में अक्सर बड़ी
परेशानी होती है और संकल्पजी बेहोश हो जाते हैं । संतुष्टि की बात यह है कि हम दूसरों को सुधारने के संकल्प
ज़्यादा लेते हैं। वह अलग बात है कि दूसरों को सुधारने का संकल्प हवा में लच्छा परांठा बनाने जैसा है। अनुभव से
लबरेज़, स्वादिष्ट एवं नई व्यावहारिक खोज यह है कि संकल्प न लेना भी एक स्पष्ट, सुरक्षित संकल्प लेने जैसा ही
है। सर्वश्रेष्ठ इतिहासजी के अनुसार यह वर्ल्ड ट्रेंड है कि कुछ दिन बाद ही अधिकांश नए संकल्प ढीले पड़ जाते हैं
और अप्रैल आते आते उन्हें सांस चढ़ जाता है, कुछ की टांग टूट जाती है। इससे बेहतर है अपने पुराने संकल्प से
ही प्यार से चिपके रहो । कम से कम इस बहाने आत्मसम्मान टिका रहेगा और अपनी नज़र में इज्ज़त भी बनी
रहेगी कि नए फालतू संकल्प नहीं लिए । प्रशंसनीय यह रहेगा कि नए साल के बारह महीने भी नाराज़ नहीं होंगे,
बेचारों को बेकार के वायदे जो नहीं झेलने पड़ेंगे। तो आइए आज के ऐतिहासिक दिन यह संकल्प लें कि हमने नए
बरस के लिए कोई संकल्प नहीं लिया है ।
गुलिस्तान ए साथी, पक्का तालाब, नाहन 173001 (हिप्र) 9816244402