भूकम्परोधी निर्माण और भूकम्पीय रेट्रोफिटिंग विषय पर डीआरडीए में कार्यशाला आयोजित
आईआईटी रोपड़ के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. मितेश सुराना और डॉ. आदित्य सिंह राजपूत ने भूकंपीय गतिविधि का सामना करने के लिए मौजूदा संरचनाओं के पुनर्निर्माण की बढ़ती आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।
डॉ.मितेश और डॉ. आदित्य ने भूकंपरोधी इमारतों के निर्माण के महत्वपूर्ण महत्व को रेखांकित करते हुए कार्यशाला में बताया कि यह भूकंप नहीं है जो मौत का कारण बनता है, बल्कि खराब तरीके से निर्मित इमारतों का गिरना है। उन्होंने बताया कि भूकंपरोधी संरचनाओं के निर्माण के लिए निर्माण की कुल लागत में केवल 5 से 10 प्रतिशत अधिक जुड़ता है, जोकि असंख्य लोगों की जान बचा सकता है।
प्रोफेसरों ने पारंपरिक निर्माण विधियों की श्रेष्ठता पर भी प्रकाश डाला, जैसे कि धज्जी दिवारी और काठ कुन्नी तकनीक, जिनका उपयोग हिमालयी क्षेत्र में सदियों से किया जाता रहा है। पीढ़ियों से चली आ रही ये स्थानीय शैलियाँ भूकंपीय गतिविधि के लिए स्वाभाविक रूप से लचीली हैं। उन्होंने इन पारंपरिक निर्माण प्रथाओं को पुनर्जीवित करने और बढ़ावा देने के लिए नीतिगत पहल की वकालत की, यह देखते हुए कि काठ कुन्नी शैली हिमालय के भूकंप-प्रवण पहाड़ी क्षेत्रों में विशेष रूप से प्रभावी है। कार्यशाला में लोक निर्माण विभाग, जल शक्ति, नगर नियोजन, बिद्युत विभाग, शिक्षा विभाग सहित विभिन्न विभागों के इंजीनियर के साथ साथ निजी निर्माण में शामिल कारीगरों ने भाग लिया। यह कार्यशाला अकादमिक विशेषज्ञता और स्थानीय शासन के बीच एक महत्वपूर्ण सहयोग को चिह्नित करती है, जिसका उद्देश्य क्षेत्र में सुरक्षित, टिकाऊ निर्माण प्रथाओं को बढ़ावा देना है। आईआईटी रोपड़ की टीम द्वारा विभिन्न स्थानों पर चयनित सरकारी भवनों की भूकंपरोधी पुनर्निर्माण क्षमता स्थिति का आकलन भी किया गया जिसमे मुख्यतः राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय ऊना, क्षेत्रीय अस्पताल ऊना, थाना सदर ऊना, राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक कन्या विद्यालय ऊना, उपमंडल कार्यालय अम्ब इत्यादि शामिल थे।
जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ऊना स्थानीय कारीगरों को भूकंपरोधी निर्माण प्रथाओं में सक्रिय रूप से प्रशिक्षित कर रहा है ताकि सुरक्षित निर्माण तकनीकों को व्यापक रूप से अपनाया जा सके।