ब्रिटिश काल में प्रार्थना की सूचना देने के लिए बजाई जाती थी यह घंटी
करीब 40 साल बाद एक बार फिर से ऐतिहासिक चर्च शिमला की कॉल बेल लोगों को सुनाई देगी। क्राइस्ट चर्च को जंहा शिमला की पहचान माना जाता है तो वंही इसमें प्रार्थना के लिए 150 साल पहले इंग्लैंड से लाई "कॉल बेल" का भी अपना ही महत्व है। जिसे प्रार्थना से पहले बजाया जाता है।
लगभग 40 साल से यह बेल खराब पड़ी थी जिसकी रिपेयर अब पूरी हो चुकी है। 25 दिसंबर को क्रिसमस और 31 दिसंबर न्यू ईयर के मौके पर यह कॉल बेल शिमला के लोगो को फिर से सुनाई देगी।
कॉल बेल कोई साधरण घंटी नहीं बल्कि मैटल से बने छह बड़े पाइप के हिस्से से बनी घंटी है। घंटी के बजते ही इन पाइप पर संगीत के सात सुर की ध्वनि आती है। इन पाइप पर हथौड़े से आवाज होती है, जिसे रस्सी खींचकर बजाया जाता है। यह रस्सी मशीन से नहीं, बल्कि हाथ से खींचकर बजाई जाती है। हर रविवार सुबह 11 बजे होने वाली प्रार्थना से पांच मिनट पहले यह बेल बजाई जाती है।
ब्रिटिश काल के समय अंग्रेजों के आवास=शिमला शहर में अलग अलग स्थानों पर होते थे। बेल के माध्यम से सूचित किया जाता था कि प्रार्थना शुरू होने वाली है। उस समय इसकी इसकी आवाज तारादेवी तक सुनाई देती थी।
क्योंकि ब्रिटिश काल में मोबाइल फोन नहीं थे इसलिए किसी दुखद घटना और आपातकाल की सूचना देने के लिए भी कॉल बेल का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन उसकी ध्वनि अलग होती थी।40 साल एक बार फ़िर से क्रिसमस और न्यू ईयर के मौके पर रात 12 बजे इस बेल को बजाकर जश्न मनाया जायेगा।
गौरतलब है कि 9 सितंबर 1844 में इस चर्च की नींव कोलकाता के बिशप डेनियल विल्सन ने रखी थी। 1857 में इसका काम पूरा हो गया। स्थापना के 25 साल बाद इंग्लैंड से इस बेल को शिमला लाया गया था। 1982 में यह बेल खराब हो गई थी। जिसे 40 साल बाद अब दोबारा ठीक करवाया गया।