न्यायपालिका की स्वतंत्रता का सम्मान सभी को क रना चाहिए: भारद्वाज -हिमालायन लॉ कॉलेज में न्यायपालिका की स्वतंत्रता विषय पर सैमीनार आयोजित

न्यायपालिका की स्वतंत्रता का सम्मान सभी को क रना चाहिए: भारद्वाज -हिमालायन लॉ कॉलेज में न्यायपालिका की स्वतंत्रता  विषय पर सैमीनार आयोजित
नाहन, 9 फरवरी (अक्स न्यूज लाइन):- हिमालायन लॉ कॉलेज में न्यायपालिका की स्वतंत्रता विषय पर एक अतिथि व्याख्यान का आयोजन किया। इस अवसर पर पीजी कॉलेज नाहन में एसोसिएट प्रोफेसर मुख्य वक्ता डा. प्रेम राज भारद्वाज ने छात्रों के साथ बातचीत की और कहा कि न्यायिक स्वतंत्रता से हमारा मतलब है। अदालतों और न्यायाधीशों की अपने कर्तव्यों को अन्य प्रभाव या नियंत्रण से मुक्त करने की क्षमता। चाहे वह सरकारी हो या निजी। इस शब्द का प्रयोग एक नियामक अर्थ में भी किया जाता है। जिसका अर्थ है कि अदालतों और न्यायाधीशों के पास किस प्रकार की स्वतंत्रता होनी चाहिए। उन्होंने न्यायपालिका की स्वतंत्रता की अवधारणा को बहुत प्रभावी ढंग से समझाया। भारद्वाज बताया कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता का क्या महत्व है स्वतंत्रता क्यों महत्वपूर्ण है। यह महत्वपूर्ण है कि प्रत्येक न्यायाधीश पक्षकारों द्वारा और कानून के अनुसार अदालत में पेश किए गए सबूतों पर ही मामलों का फैसला करने में सक्षम हो। केवल प्रासंगिक तथ्यों और कानून को ही जज के फैसले का आधार बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता राज्य द्वारा गारंटी दी जाएगी और संविधान या देश के कानून में निहित होगी। न्यायपालिका की स्वतंत्रता का सम्मान और पालन करना सभी सरकारी और अन्य संस्थानों का कर्तव्य है। इस मौके पर हिमालयन ग्रुप ऑफ प्रोफेशनल इंस्टीट्यूशंस के चेयरमैन रजनीश बंसल, वाइस चेयरमैन विकास बंसल और सीईओ मन्नत बंसल ने भी छात्रों से बातचीत करते हुए कि न्यायपालिका को क्यों स्वतंत्र होना चाहिए। उन्होंने बताया कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता का मतलब मन माना पन या जवाबदेही का अभाव नहीं है। न्यायपालिका देश के लोकतांत्रिक राजनीतिक ढांचे का एक हिस्सा है। इसलिए यह संविधान, लोकतांत्रिक परंपराओं और देश के लोगों के प्रति जवाबदेह है। हिमाचल प्रदेश कॉलेज ऑफ लॉ के डायरेक्टर प्रिंसिपल डा. अश्विनी कुमार ने छात्रों को न्यायपालिका की स्वतंत्रता के बारे में जागरूक किया। उन्होंने बताया कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ निम्न बातों से है। सरकार के अन्य अंगों जैसे कार्यपालिका और विधायिका को न्यायपालिका के कामकाज को इस तरह से बाधित नहीं करना चाहिए कि वह न्याय करने में असमर्थ हो। सरकार के अन्य अंगों को न्यायपालिका के निर्णय में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। न्यायाधीशों को बिना किसी भय या पक्षपात के अपना कार्य करने में सक्षम होना चाहिए। उन्होंने छात्रों से कहा कि सभी को इस अवधारणा के बारे में पता होना चाहिए। उन्होंने बताया कि भविष्य में भी हम इस तरह के ज्वलंत विषयों पर इस तरह के गेस्ट लेक्चर आयोजित करेंगे। जिससे छात्रों के ज्ञान में वृद्धि हो सकेण् इस मौके पर अन्य फैकल्टी सदस्य दिग्विजय, अंकित ठाकुर, बिंद्रा, श्वेता, जसप्रीत उपस्थित रहे।