टीबी हारेगा, देश जीतेगा अभियान: वाह रे सरकार फील्ड में काम किया आशा वर्कर्स ने,मंच से सम्मान मिला प्रधानों को..

टीबी हारेगा, देश जीतेगा अभियान: वाह रे सरकार फील्ड में काम किया आशा वर्कर्स ने,मंच से सम्मान मिला प्रधानों को..

 अक्स न्यूज लाइन, नाहन  18 अप्रैल :  
केंद्र सरकार के देश मे चल रहे टीबी हारेगा, देश जीतेगा अभियान को सफल बनाने, फील्ड तक ले जाने में आशा वर्कर्स एक अहम व मजबूत कड़ी साबित हुई है। हिमाचल जैसे पहाड़ी प्रदेश में, यहां के दुर्गम इलाकों में अभियान को सफल बनाने में आशा वर्कर्स ने जी जान से दिन रात एक किया है । जो फील्ड में जाकर घर-घर मरीजों की स्क्रीनिंग करती हैं, बलगम के सैंपल लेती हैं, जरूरत पड़ने पर मरीज को अस्पताल भिजवाती हैं और इलाज के दौरान दवाइयाँ घर-घर जाकर पहुंचाती हैं।
 मगर हैरानी तब हुई जब अभियान में  सम्मान देने को बारी आई तो  अफसर शाही ने आशा वर्कर्स को नजर अंदाज करते हुए पंचायत प्रधानो को मंच पर सम्मानित किया गया है। आंकड़ों की मानें तो ग्रामीण स्तर पर टीबी मरीजों की पहचान और दवा वितरण में 80% से ज़्यादा योगदान आशा वर्करों का ही है। बावजूद इसके, पब्लिक मंचों पर प्रधानों और विभागीय अधिकारियों को सम्मानित किया जाता है। फील्ड में दिन-रात मेहनत करने वाली आशा वर्करों को सिर्फ एक मामूली मेहनताना देकर उनकी मेहनत को अनदेखा कर दिया जाता है।

आशा वर्करों की पीड़ा
एक आशा वर्कर ने  बताया, "हम दिन-रात लोगों की सेवा में लगे रहते हैं। टीबी के मरीजों के बीच जाना, बलगम इकट्ठा करना और घर-घर जाकर दवाइयाँ खिलाना — ये आसान काम नहीं है। अपनी जान जोखिम में डालकर हम यह सब कर रहे हैं, लेकिन इनाम प्रधानों और अफसरों को मिलते हैं। यह सरासर अन्याय है।"

मीना, जो वर्षों से आशा वर्कर के तौर पर काम कर रही हैं, ने कहा, "हम सिर्फ टीबी ही नहीं, बल्कि टीकाकरण, गर्भवती महिलाओं की देखभाल और कई स्वास्थ्य सेवाओं में अहम जिम्मेदारी निभाते हैं। लेकिन जब सम्मान की बारी आती है, तो हमें भुला दिया जाता है। सरकार को हमारी मेहनत का भी सम्मान करना चाहिए और हमारे लिए भी प्रोत्साहन योजना बनानी चाहिए।"

फील्ड में जोखिम, सुरक्षा का अभाव
आशा वर्कर रंजना ने बताया कि कई बार तो फील्ड में काम करते हुए उन्हें सुरक्षा उपकरण तक नहीं मिलते। "हम जान जोखिम में डालकर मरीजों के बीच काम करते हैं। फिर भी हमें सिर्फ मामूली मेहनताना मिलता है और सम्मान तो दूर की बात है। प्रधान ऑफिस में बैठकर कागजी कार्रवाई करते हैं और सम्मान वही ले जाते हैं। यह कहां का न्याय है?"