ऐतिहासिक चौगान: इतिहास के आईने से....आजादी के परवाने भी जहां से हुंकार भरा करते थे

ऐतिहासिक चौगान: इतिहास के आईने से....आजादी के परवाने भी जहां से हुंकार भरा करते थे
:अरुण साथी
हिमालय पर्वत की शिवालिक रेंज में ऊंट की आकार वाली पहाड़ी पर समुद्र तल से करीब 2099 फीट की ऊंचाई पर सिरमौरी हुक्मरानों की राजधानी रहा और सूबे का प्राचीन शहर नाहन में ऐतिहासिक स्थलों की कमी नहीं है। सैंकड़ों सालों से इस शहर की अपनी जलवायु, साफ. सफाई व पर्यावरण के संरक्षण के मामले में उत्तर भारत में अपनी अलग पहचान बनाई थी।
राजशाही के दौर की धरोहरों का जिक्र हो और ऐतिहासिक चौगान का नाम न आए तो ऐसा नहीं हो सकता। सैकड़ों सालों से शहर के बीचों बीच बना यह चौगान यहां से गुजरने वाले हजारों लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। बदलते वक्त के अनुसार चौगान के आसपास का स्वरूप भले ही बदल गया हो लेकिन चौगान आज भी ऐसी कितनी ही ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी है। इन घटनाओं से बहुत से शहरी व खासतौर से युवा पीढी अभी भी अनजान है। चौगान के सीने में ऐसी कितनी ही ऐतिहासिक घटनाएं कैद हैं।
मिसाल के तौर पर सिखों के दशम गुरु साहेब कमाल श्री गुरु गोबिंद सिंह महाराज जी जब रियासत के महाराजा मेधनी प्रकाश के बुलावे पर नाहन पहुंचे तो गुरु महाराज के लाव लश्कर ने चौगान में ही डेरा डाला था। इतिहास के अनुसार चौगान में हाथियों के बीच जंग भी करवाई जाती थी। जिसमें आसपास के रियासतों के राजा अपने हाथियों के साथ शिरकत किया करते थे। यहां हुई हाथियों के बीच ऐसी जंग का जिक्र होता है जब कलसिया के राजा का भारी भरकम हाथी सिरमौर रियासत के हाथी देख चौगान से भाग खड़ा हुआ था। कहते हैं महाराजा की फौज के घोड़े भी नियमित अभ्यास इसी चौगान में करते थे। पोलो और क्रिकेट के शौकीन रॉयल फैमिली के सदस्यों के मैच यहां आयोजित हुआ करते थे।
महाराजा का राज तिलक भी और रियासत का विलय भी इसी चौगान से
रियासत के अंतिम महाराजा राजेंद्र प्रकाश का 1933 में राज तिलक का गवाह भी चौगान बना। कहते हैं राज तिलक का जश्न इतना शानदार था कि राज तिलक के मौके पर डकोटा प्लेन से चौगान के ऊपर फूलों की वर्षा की गई और जंगे आजादी के बाद 1947 में सिरमौर रियासत का भारतीय संघ में विलय भी इसी चौगान में हुआ।
जब देश के पहले गृहमंत्री लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के दूत आचार्य कृपलानी रियासत में पहुंचे तो पहले दिन राज महल में महाराजा को वल्लभ भाई पटेल का निर्देश सुनाया और भारतीय संघ में विलय के लिए मर्ज डीड पर हस्ताक्षर करने को कहा। अगले दिन चौगान में हजारों रियासत के वासियों के बीच महाराजा राजेंद्र प्रकाश ने मर्ज जीड पर हस्ताक्षर किए। यह महाराजा के भाग्य की विडम्बना ही थी कि जिस चौगान में 1933 में उनका राज्याभिषेक हुआ उसी चौगान में 1947 में महाराजा को गद्दी छोडऩी पड़ी।
आजादी के परवाने भी चौगान से हुंकार भरा करते थे।
आजादी के परवाने भी फिरंगियों के खिलाफ इस चौगान से हुंकार भरा करते थे। राजशाही के खिलाफ जब प्रजामंडल आंदोलन की बैठकें भी इसी चौगान में हुआ करती थीं। आजादी के साल बीत जाने के बाद भी ऐतिहासिक चौगान अपना एक अलग मुकाम रखता है। सभी राष्ट्रीय पर्वों का आयोजन यहां होता है। कितने ही राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी इस चौगान ने दिए हैं। रियासत से मिली इसी धरोहर का नगर परिषद सही रखरखाव करने में नाकाम रही है। भले ही सालाना लाखों रूपये किराये के नाम पर नाम वसूले जा रहे है।