हिमाचल की सबसे बड़ी प्राकृतिक झील श्रीरेणुकाजी के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। देश की आस्था का प्रमुख प्रतीक माने जाने वाली श्रीरेणुकाजी झील की गहराई लगातार कम हो रही है। वैज्ञानिक चिंतित हैं कि यदि इस ऐतिहासिक व धार्मिक धरोहर को बचाने की दिशा में शीघ्र उचित कदम नहीं उठाया गया, तो यह लाखों श्रद्धालुओं की आस्था पर एक बड़ा आघात हो सकता है।
देश के नामी संस्थान वाडिया इंस्टीच्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी देहरादून के वरिष्ठ वैज्ञानिक नरेंद्र मीणा द्वारा झील की बेथीमेट्री हिमालयन जूलॉजी में पब्लिश हो चुकी है। बेथीमेट्री यानी जल की गहराई मापने में इस्तेमाल होने वाली टेक्नीक में बड़ा खुलासा यह हुआ है कि श्रीरेणुकाजी झील की गहराई केंद्र में केवल 30 फुट के लगभग रह गई है।
रिसर्च डॉक्यूमेंट की मानें, तो इस पवित्र झील के आसपास भारी मात्रा में गाद और जल में उगने वाले फंगस पेड़-पौधे आदि भी काफी मात्रा में हो चुके हैं। ऐसे में यदि झील का उपचार वाडिया इंस्टीच्यूट के वैज्ञानिकों की देखरेख में न किया गया, तो निश्चित ही यह झील एक छोटे से तालाब मात्र में सिमट कर रह जाएगी।
झील पर बन रहे इस बड़े खतरों की वजह झील के चारों तरफ प्रोटेक्शन वॉल का न बना होना तथा मेले के दौरान लोगों द्वारा आसपास के क्षेत्र में मल मूत्र आदि का त्याग किया जाना बड़ा कारण माना जा रहा है। वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. नरेंद्र मीणा ने बताया कि इस झील के संरक्षण को लेकर उनके द्वारा वैज्ञानिक तरीके से कैसे इसको बचाया जाए, इसकी योजना भी उनके पास है।
उपायुक्त सिरमौर आरके गौतम ने बताया कि फोरेस्ट डिपार्टमेंट के साथ मिलकर इस धार्मिक स्थल पर सीवरेज व्यवस्था बनाए जाने को लेकर योजना का प्रारूप बना लिया गया है। पर्यावरण प्रेमियों में शामिल डा. सुरेश जोशी व डा. संजीव अत्री का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय पहचान श्रीरेणुका झील की गहराई कम होना एक बड़ा चिंता का विषय है।