हाईकोर्ट ने सफाई कर्मचारी को मैला ढोने के लिए मजबूर करने पर कड़ा लिया संज्ञान
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सफाई कर्मचारी को मैला ढोने के लिए मजबूर करने पर कड़ा संज्ञान लिया है। न्यायाधीश सत्येन वैद्य ने इसे मौलिक अधिकारों का हनन बताया है। अदालत ने मुख्य सचिव (सीएस) को आदेश दिए कि वह सफाई कर्मचारी को छह हफ्ते में दो लाख का मुआवजा अदा करें।
साथ ही दोषी अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्यवाही करने को कहा है। अदालत ने केंद्र सरकार को आदेश दिए कि मैला ढोने वाले और उनका पुनर्वास अधिनियम 2013 को लागू करने के लिए उचित कदम उठाए जाएं। याचिकाकर्ता चरण राम की याचिका को स्वीकार करते हुए अदालत ने यह आदेश पारित किए।
मामले के अनुसार याचिकाकर्ता को चंबा जिले के राजकीय बहुतकनीकी कॉलेज बनीखेत में सफाई कर्मचारी के तौर पर नियुक्त किया था। उसकी नियुक्ति छात्र कल्याण फंड के अधीन की गई थी। 5 दिसंबर, 2017 से 5 जनवरी, 2018 तक संस्थान ने छात्रों की परीक्षाओं का आयोजन किया।
परीक्षा केंद्र निर्माणाधीन भवन की चौथी मंजिल पर बनाया गया। उस मंजिल पर शौचालय सुविधा नहीं थी। कॉलेज प्रबंधन ने याचिकाकर्ता को निर्देश दिए कि वह एक ड्रम लाकर परीक्षा केंद्र के बाहर रख दे, जिससे परीक्षार्थी उसे शौच करने के लिए इस्तेमाल कर सकें।
याचिकाकर्ता को आदेश दिए कि इस ड्रम को पहली मंजिल में खाली कर दोबारा परीक्षा केंद्र के बाहर रखा जाए। याचिकाकर्ता ने यह काम करने से मना कर दिया, लेकिन कॉलेज प्रशासन ने उसे मैला ढोने पर मजबूर किया। याचिकाकर्ता ने इसकी शिकायत मुख्यमंत्री और मुख्य न्यायाधीश के नाम की।
अदालत के समक्ष राज्य सरकार ने दलील दी कि इस मामले की जांच तहसीलदार डलहौजी ने की है और याचिकाकर्ता की ओर से लगाए आरोप झूठे पाए गए। वहीं, मामले से जुड़े रिकॉर्ड का अवलोकन करने के बाद अदालत ने पाया कि कॉलेज प्रशासन ने याचिकाकर्ता को छात्रों के शौच ढोने के लिए मजबूर किया। इस कार्य से उसके मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है।
अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि कॉलेज प्रशासन का कार्य मैला ढोने वाले और उनका पुनर्वास अधिनियम 2013 के प्रावधानों का सरासर उल्लंघन है। अदालत ने शीर्ष अदालत की ओर से इस संबंध में पारित फैसलों का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता की याचिका को स्वीकार किया और उसे मुआवजे का हकदार ठहराया।