हाईकोर्ट की वीआईपी कल्चर पर कड़ी टिप्पणी क्या वीआईपी नंबर के बिना सरकार का वाहन नहीं चल सकता
हाईकोर्ट ने वीआईपी कल्चर पर कड़ी टिप्पणी की है। न्यायाधीश अजय मोहन गोयल ने सरकारी गाड़ियों में वीआईपी नंबर लगाने पर मुख्य सचिव (सीएस) से जवाब तलब किया है। अदालत ने पूछा है कि आम लोगों के टैक्स के पैसों से अधिकारियों का वीआईपी नंबर खरीदने का क्या औचित्य है और ऐसा कौन सा पुण्य का कार्य है जो इसके बिना नहीं हो सकता।
अदालत ने यह जानकारी शपथ पत्र के माध्यम से 12 दिसंबर तक तलब की है। न्यायाधीश गोयल ने अपने आदेश में कहा कि अदालत यह समझने में विफल है कि 0001 से 0009 तक के नंबरों के बारे में इतना खास क्या है कि इसके बिना सरकार का वाहन नहीं चल सकता। यदि इन नंबरों को सरकार के लिए ही आरक्षित रखने के पीछे सरकारी खजाने को समृद्ध करने की मंशा है तो उस स्थिति में सरकार टैक्स के पैसों से सरकारी वाहनों में पसंदीदा नंबर नहीं लगा सकती है।
याचिकाकर्ता संजय सूद ने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार की 26 दिसंबर 2011 को जारी अधिसूचना के आधार पर उसने 50 हजार रुपये की राशि से 0006 नंबर बुक करवाया था, लेकिन विभाग ने मनमाने तरीके से इसका आवंटन कर दिया। 18 नवंबर 2015 को राज्य सरकार ने अधिसूचना के तहत 0001 से 0009 तक के सभी नंबर सरकारी वाहनों के लिए आरक्षित रखे हैं।
याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि जब उसने 50 हजार रुपये की राशि से 0006 नंबर बुक करवाया था तो उस स्थिति में इस नंबर को किसी और को आवंटन करना न्यायोचित नहीं है। गौर हो कि वीआईपी नंबर के लिए वर्ष 2015 से पहले 50 हजार रुपये का मूल्य रखा गया था। आम जनता भी पैसे जमा करवाने के बाद पसंदीदा नंबर खरीद सकती थी, लेकिन 2015 के बाद 0001 से 0009 तक के सभी नंबर सरकारी वाहनों के लिए आरक्षित रखे गए हैं।
2015 की अधिसूचना के तहत पसंदीदा नंबर की कीमत
नंबर कीमत
0001 से 0009 तक 1 लाख रुपये (सरकारी वाहनों के लिए आरक्षित)
0011 से 0100 तक 1 लाख रुपये
0101 से 0999 तक 25 हजार रुपये
1000 से 9999 तक 5 हजार रुपये