व्यंग्य : प्रभात कुमार ज़िंदगी एक ट्रेड मार्क है

व्यंग्य : प्रभात कुमार        ज़िंदगी एक ट्रेड मार्क है

बड़ी दुकानवाला, चाहे असली सा महसूस करवाने वाले, नकली स्वाद का प्रभावशाली विज्ञापन छपवाए या अपने
व्यवसाय में पारदर्शिता होने का विज्ञापन बनवाए, विज्ञापन पढने या देखने वालों को सब कुछ कहां समझ आता है।
हालांकि वे समझते है कि उन्हें समझ आ गया या वे समझना नहीं चाहते। इसलिए अधिकांश ग्राहक सब खा, पी
और निगल जाते हैं। कुछ भी हो इस तरह से उनकी बीमारियां झेलनी की ताक़त बढ़ती जाती है। दुकानदारों और
सामान के स्वादिष्ट विज्ञापनों ने उन्हें इतना कुछ बेच, खिला, पिला दिया है कि नकली और नकली पीकर उनकी
जीभ को असली का स्वाद भूल गया है । सब जानते हैं कि क़ानून बहुत सख्त है और लागू है। सभी कम्पनियां,
सभी कायदे क़ानून, बड़े सलीके से फॉलो करती हैं। विज्ञापन में स्पष्ट और साफ़ छाप देती हैं कि हमारी फ्रूट पॉवर
केवल एक ट्रेड मार्क है और इसकी वास्तविक प्रकृति का प्रतिनिधित्व नहीं करती है। ऐसे विज्ञापन पकाने वाले
प्रकृति और प्रवृति को एक ही वस्तु समझते होंगे। वे यह भी समझते होंगे कि विज्ञापन वही जो आकर्षित करे और
ग्राहक पटाए या फसाए । क्या फर्क पड़ता है जब कुछ समझदार बंदे पर्यावरण और वातावरण को एक ही समझते
हैं। इन दोनों को एक समझने से फर्क पड़ना भी नहीं चाहिए। फर्क पड़ने लगा तो क़ानून को बहुत ज़्यादा सख्ती से
लागू करना पडेगा जो दूसरी कई चीज़ों को तोड़ देगा । वैसे भी तो काफी कुछ सिर्फ ट्रेड मार्क बनकर ही रह गया है।
राजनीति, धर्म, क्षेत्र, सत्य, झूठ, संवेदना, प्यार और नफरत सब ट्रेडमार्क ही तो हो गए हैं और कईयों के तो अपने
अपने शानदार ट्रेड मार्क भी हैं। प्रतिनिधित्व न लिखकर सिर्फ प्रकृति या प्रवृति लिखेंगे तो लगेगा बात स्पष्ट हो गई
मगर फिर डिप्लोमेसी खत्म हो जाएगी। मिसाल के तौर पर प्यार और नफरत का ट्रेड मार्क आजकल बाज़ार की
रौनक है। भीतर से नफरत करने वाले भी नकली प्रवृति की बाहरी मुस्कुराहटें बांट रहे हैं। नकली प्यार की असली
जफ्फियां मार रहे हैं मतलब संबंधों में सांकेतिक इम्युनिटी बढ़ाई जा रही है। कह सकते हैं कि नफरत न दिखाने के
लिए जो जफ्फियां प्रदर्शित की जा रही हैं, हाथ मिलाए जा रहे हैं वे प्यार की गहराइयों या उंचाई की वास्तविक
प्रवृति का प्रतिनिधित्व नहीं करती। कहा भी गया है.. दिल मिलें न मिले हाथ मिलाते रहिए। परवाह शब्द ऐसा हो
गया है मानो किसी के खाते में नहीं, हाथ में दो दो हज़ार के नोट थमा दिए हों। वही नोट जो आजकल बाज़ार की
आर्थिक रौनक से बाहर हैं। विज्ञापनों की कैच लाइन का क्या दोष, खरीददारों के लिए, जिन इंसानों ने इन्हें बनाया
है वे भी तो स्थापित ट्रेड मार्क हैं। उनके द्वारा डिज़ाइन की बातें, मुस्कुराहटें, संवाद और वायदे सब कुछ ट्रेड है ।
बिकने वाले सामान की बारी तो बाद में आती है। इनके विज्ञापन, विटामिन के सुप्रभाव के हिसाब से, ग्राहकों की
इम्युनिटी बढ़ाने में मदद करने का प्रतिनिधित्व ज़रूर करते हैं । यह विशवास जमा रहता है कि ज़िंदगी भी ट्रेड
मार्क है।

गुलिस्तान ए साथी, पक्का तालाब, नाहन 173001 (हिप्र) 9816244402