धारा.118 के कारण लाखों गैर कृषक हिमाचली बना डाले दूसरे दर्जे के नागरिक

धारा.118 के कारण लाखों  गैर कृषक हिमाचली बना डाले दूसरे दर्जे के नागरिक

धारा 118 के शिकंजे से मुक्ति देकर रिहायशी व व्यापार के लिए  सीधे जमीन खरीदने का हक देने के मामले में आज तक में भाजपा व कांग्रेस की सरकारों ने सूबे के लाखों गैर कृषक हिमाचलियों की उम्मीदों पर पिछले कई दशकों से पानी फेरा है। भाजपा सरकार के इस मामले में अपनाए गए रुख से इन हिमाचलियों की भावनाओं को ठेस पहुंची है। सरकार चाहे कांग्रेस की रही हो या फिर भाजपा की गैर कृषक हिमाचलियों को सीधे जमीन खरीदने की अनुमति देने के मामले में खिलवाड़ ही किया है। ऐसे में आज भी लाखों गैर कृषक सीधे पंजीकरण करवाकर जमीन खरीदने से वंचित हैं। उधर सरकार किसानों की भूमि को बचाने की दलील देकर 1972 में लागू एक्ट के नाम पर पल्ला झाड़ती रही है। ऐसे में करीब पांच दशकों से लाखों गैर कृषकों को सरकार ने दूसरे दर्जे का नागरिक बना डाला है। 

राज्य के कृषक कहीं भी भूमि खरीद व बेच सकते हैं जबकि गैर कृषकों पर बंदिश लागू है। यह अलग बात है कि सरकार धारा 118 के तहत गैर कृषकों को ना भूमि खरीदने की अनुमति नियमानुसार देती है लेकिनं यह प्रक्रिया इतनी जटिल है कि आम गैर कृषक तो इस बारे में सोच ही नहीं सकता। जो लोग जमीन खरीदने के लिए आवेदन करते हैं उन्हें जिलाधीश कार्यालय से लेकर राज्य सचिवालय तक कितने धक्के खाने पड़ते हैं इसका अंदाजा केवल गैर कृषक ही लगा सकते हैं।

उधर सरकार भी अवैध कब्जे करने वाले कृषकों पर मेहरबान  रही है। हाईकोर्ट आदेशों के द्वारा तय समय सीमा में कब्जे छुड़ाने की बजाय कब्जों को नियमित करने के लिए सरकार ने हाई पावर कमेटी का गठन भी पूर्व में किया। इसी तरह पूर्व में कैबिनेट की बैठक में भी अवैध कब्जों को नियमित करने के लिए कहा गया। सरकार को अवैध कब्जाधारियों के मानवीय अधिकारों की तो चिता है। लेकिन गैर कृषक हिमाचलियों की नही। 
लाखों गैर कृषक हिमाचलियों केमानवीय अधिकारों की चिंता नहीं है। सरकार ने इस मामले में कानून का डंडा दिखाकर अपनी आंखें मूंद लीं। क्या हिमाचल के विकास में लाखों गैर कृषकों का योगदान नहीं है। दशकों से गैर कृषक प्रदेश में आवास, व्यवसाय या खेती के लिए बिना इजाजत कृषकों की तर्ज पर सरकार से भूमि खरीदने का हक मांग रहे हैं लेकिन सत्ता में आने वाली पार्टियों ने कुछ नहीं किया उलटा धारा 118 को हाथियार बनाकर जब जब मौका मिला एक.दूसरे पर तान दिया।

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या लाखों गैर कृषकों ने प्रदेश के विकास के लिए अपना योगदान नहीं दिया। क्या वे अपना खून पसीना नहीं बहा रहे हैं। क्या वे टैक्स नहीं देते। क्या वे वोट नहीं देते। गैर कृषकों के साथ तो संविधान के तहत मिले मौलिक अधिकारों का ही हनन हो रहा है। जिसमें कहा गया है कि भारत का नागारिक किसी भी राज्य में रहने के लिएए व्यापार करने के लिए कानून लागू किया है। पूरी तरह से स्वंतंत्र है।

सवाल यह भी है कि जिन किसानों की भूमि को बचाने के लिए सरकार ने धारा 118 को लागू किया था वही किसान दशकों से अपनी भूमि को बेचते आए हैं। आज जमीन बेचकर धन्ना सेठ ही किसान बने हैं और बड़े-बड़े बिल्डर भी गैर कृषक तो आज भी जमीन का एक टुकड़ा खरीदने के लिए सरकार के रहमोकरम पर निर्भर है। 

 धारा 118 ने तो यहां के लाखों नागरिकों को भावनात्मक रूप से दो हिस्सों में बांट डाला है। कानून विशेषज्ञ भी मानते हैं कि अगर गैर कृषक हिमाचलियों को सीधे जमीन खरीदने का हक देना है तो ये सब की बजाय राजनीतिक इच्छा शक्ति से ही होगा। गैर कृषकों के मामले में सरकार ने जो रुख अपनाया है उसके बाद गैर कृषकों में पिछले कई सालों से पलायनवादी सोच उभरी है। बहुत से गैर कृषक अब दूसरे राज्यों की ओर रुख करने पर मजबूर हो चुके हैं जहां धारा 118 जैसी बंदिशें नहीं हैं। शहरी क्षेत्रों में नहीं हो रहे हैं जमीन के पंजीकरण: शहरी क्षेत्रों में भी गैर कृषकों के साथ भेदभाव जारी है। धारा 118 के नाम पर गैर कृषकों को यह कहकर जमीन के पंजीकरण से वंचित किया जा रहा है कि अगर गैर कृषक का पुश्तैनी घर में हिस्सा बनता है तो आप अन्यत्र भूमि खरीदने के पात्र नहीं है। 

-गैर कृ षक हिमाचलियों के साथ यह सरासर नाइंसाफी है। दशकों से लाखों हिमाचली धारा 118 के  शिंकजे में फंसे है। 1972 से पहले के बोनाफाइड हिमाचली तो सीधे जमीन खरीदने के हकदार है। सरकार को अपने लोगों को समझना चाहिए। 
- दिग्गविजय गुप्ता, अध्यक्ष नागरिक सभा,नाहन

- हिमाचल में पुश्त दर पुश्त रहने निवासियों को मकान बनाने व व्यापार करने के लिए ग्रामीण व शहरी इलाकों में जमीन खरीदने की अनुमति का सरलीकरण धारा 118 में होना चाहिए। सरकार को यह अधिकार उपायुक्तों को देना चाहिए। गैर कृषक हिमाचली मेंं जमीन खरीदने के मामले में धक्के खाने से बचें। बेनामी जमीनों की खरीदोफरोक्त भी चल रही है। अफ सोस दोनों दलों की सरकारों ने आज तक गैर कृ षकों के हितों की अनदेखी की है। 
- अजय बहादूर सिंह, पूर्व कांग्रेसी विधायक 

- लाखों गैर कृ षक हिमाचलियों क ो जमीन खरीदने के अधिकार सीधे सीधे मिलना चाहिए, पुश्तों से रहने वाले इन हिमाचलियों ने प्रदेश के विकास में अहम रोल किया है। धारा 118 के  शिकंजे से अपने लोगों को परेशान नही करना चाहिए। सरकार रास्ता निकाले, घर बनाने व रोजगार करने का हक गैर कृ षक हिमाचलियों का भी है। 
- विनय गुप्ता, जिला अध्यक्ष, भाजपा