प्राकृतिक खेती पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में भी गूंजा गांव हरनेड़ का नाम
दक्षिण-पूर्व एशियाई देश लाओस की राजधानी विएंटिन में 25 से 27 नवंबर तक ‘प्राकृतिक खेती और एग्रो-इकोलॉजी’ पर आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस के दौरान हिमाचल की संस्था ‘हिमररा’ ने प्रदेश के दस गांवों को कुदरती गांव यानि पूरी तरह प्राकृतिक खेती वाले गांव बनाने संबंधित रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसे कांफ्रेंस में काफी सराहना मिली।
‘हिमररा’ के संस्थापक एवं जाने-माने कृषि वैज्ञानिक डॉ. डीके सडाना ने कांफ्रेंस के दौरान अपनी प्रेजेंटेशन में हिमाचल प्रदेश के तीन गांवों के प्राकृतिक खेती के मॉडल को प्रमुखता से प्रस्तुत किया। इस प्रेजेंटेशन में हमीरपुर के गांव हरनेड़ के ललित कालिया, जिला मंडी के गांव कठेओ की कला देवी और पांगणा के सोमकृष्ण को चैंपियन किसानों के रूप में उल्लेख किया गया। इन किसानों ने प्राकृतिक खेती में उत्कृष्ट कार्य किया है और अन्य किसानों को भी प्रेरित करके अपने गांव को पूरी तरह प्राकृतिक खेती युक्त बनाने में सराहनीय योगदान दिया है।
लाओस से डॉ. डीके सडाना से मोबाइल फोन पर जानकारी मिलने के बाद ललित कालिया ने बताया कि गांव हरनेड़ के लिए यह गर्व की बात है।
ललित कालिया ने बताया कि रासायनिक खाद और जहरीले कीटनाशकों के दुष्प्रभावों को देखते हुए उन्होंने कुछ वर्ष पूर्व प्राकृतिक खेती को अपनाने का निर्णय लिया तथा अपनी पुश्तैनी जमीन पर प्राकृतिक विधि से फसलें लगानी शुरू कीं। ललित कालिया की इस पहल को कृषि विभाग की आतमा परियोजना के अधिकारियों के मार्गदर्शन ने नए पंख प्रदान किए। आतमा परियोजना के माध्यम से ही ललित कालिया ‘हिमररा’ नेटवर्क के संपर्क में आए और प्राकृतिक खेती को बल देने के लिए उनके मन में पुराने देसी बीजों के संरक्षण का विचार आया।
आज उन्हांेने अपने घर में ही गेहूं और मक्की के साथ-साथ कई पारंपरिक मोटे अनाज, दलहनी और तिलहनी फसलों तथा सब्जियों के प्राचीन देसी बीजों का एक अच्छा-खासा बैंक तैयार कर लिया है।
प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की दिशा में मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू के प्रयासों की सराहना करते हुए ललित कालिया का कहना है कि इस विधि से तैयार फसलों के लिए अलग से उच्च खरीद मूल्य का प्रावधान करके मुख्यमंत्री ने प्रदेश के किसानों को बहुत बड़ी सौगात दी है। उनका कहना है कि प्रदेश सरकार के इन प्रयासों के निसंदेह, काफी अच्छे परिणाम सामने आएंगे और लोग बड़ी संख्या में प्राकृतिक खेती की ओर अग्रसर होंगे।



