फरवरी के दूसरे पखवाड़े में किए जाने वाले कृषि व पशुपालन के कार्यों के लिए मार्गदर्शिका
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अक्स न्यूज लाइन, नाहन 17 फरवरी :
प्रदेश के निचले पर्वतीय क्षेत्रों में भिंडी, फ्रेंच बीन, खीरा, समर स्क्वैश, करेला व लीकी तथा अन्य सब्जियों की बिजाई करें। यह सलाह किसानों को चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर द्वारा कृषि विज्ञान केंद्र, सिरमौर के माध्यम से फरवरी माह के दूसरे पखवाड़े में किए जाने वाले कृषि व पशुपालन कार्यों के संदर्भ में दी है।
इन क्षेत्रों में भिंडी की पालम कोमल, परभनी क्रांति, पी 8, अर्का अनामिका, वर्षा उपहार, यू.एस.-7109, पांचाली, उमंग, इन्द्रनील और फ्रेंच बीन की कन्टेडर, प्रीमियर, पालम मृदुला, फाल्गुनी, सोलन नैना व अर्का कोमल आदि की बिजाई की जा सकती है। अंतिम जुताई से पूर्व भिंडी में 8 क्विंटल गोबर खाद, 12 किलो एन.पी.के. (12:32:16), 4 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश तथा 4 किलो यूरिया तथा फ्रेंच बीन में 16 क्विंटल गोबर खाद और 25 किलो एन.पी. के. (12:32:16) प्रति बीघा खेत में प्रयोग करें। इन फसलों में खरपतवार नियंत्रण के लिए 320 मि.ली. स्टॉम्प (पेंडीमेथालिन) 60 लीटर पानी की दर से प्रति बीघा बिजाई के 2 दिन के भीतर छिड़काव करें।
इसके साथ ही इन क्षेत्रों में खीरे की लॉन्ग ग्रीन, पॉइन्सेट, यूएस 6125, नूरी, मालिनी, संकर-243, समर स्क्वैश की पूसा अलंकार, ऑस्ट्रेलियन ग्रीन, करेले की सोलन हरा, सोलन सफेद, चमन-संकर, पाली-संकर और लौकी की पूसा मंजरी, पूसा मेघदूत, पी.एस.पी.एल., वरद-संकर आदि किस्मों की बिजाई करें।
टमाटर, बैंगन व शिमला मिर्च की करें नर्सरी बिजाई
इसके अलावा मध्यवर्ती पहाड़ी क्षेत्रों में फरवरी माह के दूसरे पखवाड़े में ग्रीष्मकालीन सब्जियों की नर्सरी उगाने का उपयुक्त समय है। किसान भाई टमाटर, बैंगन, शिमला मिर्च, हरी मिर्च, और अन्य सब्जियों की पनीरी तैयार कर सकते हैं। इसके लिए 3 मीटर लंबी, 1 मीटर चौड़ी और 10 से 15 सेंटीमीटर ऊंची नर्सरी बैड तैयार करें।
इन बैड में 20-25 किलो अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद, 200 ग्राम एस. एस. पी. या एन. पी. के (12:32:16), 15-20 ग्राम इंडोफिल-एम 45 और 20 25 ग्राम फोलीडोल धूल मिलाकर बिजाई करें। किसान भाई विश्वविद्यालय द्वारा अनुमोदित टमाटर की किस्में जैसे पालम पिंक, पालम प्राइड, अवतार (संकर-7711), रक्षिता, हिमसोना, यश और
नवीन 2000, बैंगन की अर्का निधि, अर्का केशव, हिसार श्यामल, हरी मिर्च की सूरजमुखी और शिमला मिर्च की कैलिफोर्निया वंडर और पैलो वंडर किस्मों का चयन कर सकते हैं।
इसके अलावा अगेती उपज के लिए खीरा, समर स्क्वैश, करेला, लौकी, तुरई आदि की नर्सरी पॉलीट्यूब बैग्स में भी उगाई जा सकती है। इसके लिए गोबर, रेत और मिट्टी (1:1:1) का मिश्रण भरकर प्रति बैग 1-2 बीज बोएं। नर्सरी तैयार होने पर इनका पौधारोपण किया जा सकता है।
फसलों में करें रोगों व कीटों का नियंत्रण
भूरी सरसों और राया में तेले के नियंत्रण के लिए मिथाइल डेमिटान 25 ई.सी. या डाईमिथोएट 30 ई.सी. 1 मि.ली. तथा चने में फली छेदक सुंडी के नियंत्रण के लिए 1 मि.ली. एन.पी. वी. (2 प्रतिशत एस) प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें। संक्रमण अधिक होने पर 0.8 मिली लेम्डा साईहेलोथ्रीन 5 ई. सी. या 5 मिली लीटर एजाडायरेक्टिन 0.03 प्रतिशत प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें। फूलगोभी और पत्तागोभी में एफिड्स और कैटरपिलर के नियंत्रण के लिए 1 मिली लीटर मैलाथियान 50 ई.सी. तथा प्याज के विभिन्न रोगों के नियंत्रण के लिए 2.5 ग्राम इंडोफिल या रिडोमिल एम जैड प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।
गेहूं की फसल में विशेष सावधानी:
पीला रतुआ के लक्षण दिखाई देने पर 1 मिलीलीटर टिल्ट (प्रोपिकोनाजोल) प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें।
पशुओं का रखें विशेष ध्यान:
पशुओं को हरा व सूखे चारे को मिलाकर खिलाएं। दाना मिश्रण में खनिज लवण और नमक का प्रयोग करें।
इसके साथ ही पशुओं में गर्माहट के लक्षणों पर ध्यान दें। पशुओं को खुर-मुंह बीमारी के लिए टीका लगवाएं साथ ही नवजात बच्चों के लिए परजीवी नियंत्रण पर विशेष ध्यान दें। बछड़ियों को ब्रूसीलोसिस नामक बीमारी से बचाने के लिए 5-6 माह की उम्र पशुओं को कुतरे हुए हरे चारे के साथ सूखा चारा मिलाकर खिलाएं। दाना मिश्रण में खनिज लवण और नमक का प्रयोग करें।
इसके साथ ही पशुओं में गर्माहट के लक्षणों पर ध्यान दें और व्यान्त के 2-3 महीने बाद गर्भाधान करवाएं। पशुओं को खुर-मुंह बीमारी से बचाने के लिए टीका लगवाएं। नवजात बच्चों के लिए परजीवी नियंत्रण पर विशेष ध्यान दें, वहीं बछड़ियों को ब्रूसीलोसिस बीमारी से बचाने के लिए 5-6 महीने की उम्र में टीकाकरण कराएं।
मुर्गीपालन के लिए यह करें व्यवस्था:
मुर्गीपालन के लिए अच्छी हैचरी से अनुबंध करें और मुर्गियों के लिए स्वच्छ जल, अच्छा दाना मिश्रण और उचित तापमान की व्यवस्था करें। पुरानी मुर्गियों को कृमि-रहित करने की व्यवस्था करें और अनुत्पादक मुर्गियों की छंटनी भी सुनिश्चित करें।
मछली पालन करने वाले किसानों को तालाबों में देशी खाद डालने और छोटे अंगुलिकाओं के पोषण का ध्यान रखने की सलाह दी जाती है।
किसान भाई अधिक जानकारी के लिए कृषि तकनीकी सूचना केन्द्र एटिक (01894-230395), किसान काल सेंटर (1800-180-1551) या किसान सारथी पोर्टल पर पंजीकरण कर सकते हैं या
कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से भी सीधे संपर्क कर सकते हैं।