व्यंग्य : प्रभात कुमार नई सरकार के इंतज़ार का मौसम
वोटिंग हो चुकी है। हौले हौले फैलती सर्दी के मौसम में चुनाव की गर्मी अब ठंडा रेगिस्तान हो गई है।
कयासों का मौसम आ गया है जो तब तक चलेगा जब तक सरकार बन न बैठे । वोटिंग होने के बाद भी
विवादवार जारी है। हर पार्टी राजनीति के निम्नतम स्तर पर चढ़ कर कह चुकी है कि हम ही जीतेंगे और
सरकार हमारी ही बनेगी । वायदे इरादे आराम कर रहे हैं । इस बार ज्योतिष की साख, सही और गलत
गणना के फेर में उलझ गई है। इस अनूठी भारतीय विद्या की इज्ज़त पर सवाल खड़ा हो गया है और
जवाब भविष्य के गर्भ में है।
सरकार किसकी होगी इस बार यह अंदाजा लगाने का काम ज्यादा मेहनत से किया जा रहा है, धुरंधर
ब्यानबाज आराम से नहीं बैठे हैं । दिग्गज नेताओं के दावे ख़बरें बन रहे हैं। कई दिमागों में सरकार
साकार हो चुकी है। संभावित मंत्रालयों से किस किस की गोद भराई होगी यह भी लगभग तय हो चुका
है। जिन बड़े अफसरान का तबादला संभावित है, वे मानसिक रूप से तैयार होने लगे हैं। कौन कौन से
अफसर जाएंगे और कौन मनपसंद आएंगे यह भी दिमाग में पकाना शरू हो गया है । राजनीति की
चारित्रिक विशेषता एंव घोर आवश्यकता बदली नहीं है कि सरकार, अपनी पार्टी व अपनों का जी भर कर
विकास करे, किसान व गरीबों के किए बढ़िया स्वादिष्ट योजनाएं पकाए और सबको खाने का अवसर दे।
‘जा रही सरकार’ ने इस बार भी बहुत सलीके से समझाया कि कितना ज़्यादा विकास किया और ‘आ
रही सरकार’ ने आने वाले पांच वर्षों के दौरान आशा जगाऊ, ख़्वाब दिखाऊ शैली में संभावित अति
विकास के सपने दिखाए हैं। असली चुनावी दंगल अक्सर कम राजनीतिक पार्टियों में ही होता है। कुछ
व्यक्ति अपने दम पर जीतते हैं, बाकी दसियों नहीं सैंकड़ों तो, पता होते हुए भी, अपनी ज़मानत ज़ब्त
करवाकर सरकारी खजाने की आय बढाने के लिए ही खड़े होते हैं। हो सकता है इस बार स्वतंत्र
विजेताओं का सोनाचांदी हो जाए या उन्हें मलाल रहे कि वे सरकार बनाने जा रहे बहुमत प्राप्त दल में
शामिल क्यूं नहीं हुए अच्छी आफर के बावजूद।
प्रसिद्द व समझदार व्यक्तियों व संस्थाओं की तरफ से बार बार आग्रह करने के बावजूद बहुत से
नासमझ नागरिक वोट नहीं देते। क्या वे उदास वोटर हैं जिन्हें अभी तक दास वोटर नहीं बनाया जा
सका । शायद उन्हें नहीं पता कि वोट की कीमत जितना मिल जाए उतने सामान जितनी तो है। कई
घिसेपिटे, पुराने, धोखा खाए पैसा लुटाए और साथसाथ शरीर तुड़वा चुके पूर्व राजनीतिज्ञ अब मानने लगे
हैं कि जिन नक्षत्रों में आम वोटरों ने जन्म लिया व जिन निम्न स्तरीय, कहीं कहीं तो नारकीय जीवन
परिस्थितियों में जी रहे हैं, से उन्हें भगवान के सामने दिन रात की गई लाखों प्रार्थनाएं नहीं निकाल
सकीं, हाथ पसार कर वोट मांगने वाला, दिल का मैला व्यक्ति कैसे निकाल सकता है। वे कहते हैं कि
यह जो हम हर बार कहते रहते है, लोकतंत्र की जीत हुई, ऐसा नहीं है हम सब मिल कर लोकतंत्र को
हराते हैं। हमारे देश के हर चुनाव में आशा, विश्वास, मानवता, जाति और धर्म की हार होती है।
राजनीतिजी ऐसी छोटी मोटी बातों की परवाह नहीं करती। इंतज़ार का मौसम लंबा चलने वाला है । इस
दौरान मुफ्त धूप सेंकने से, विटामिन डी के क्षेत्र में मुफ्त विकास होगा ।
गुलिस्तान ए साथी, पक्का तालाब, नाहन -173001 हिप्र 9816244402