मौसम पूर्वानुमान अनुसार करें कृषि एवं पशुपालन कार्य।
अक्स न्यूज लाइन नाहन,04 जनवरी :
चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर प्रसार शिक्षा निदेशालय ने
जनवरी 2025 महीने के प्रथम पखवाड़े में किये जाने वाले कृषि एवं पशुपालन कार्यों से संबंधित मार्गदर्शिका जा रही है जो किसानों के लिए लाभप्रद साबित होगी।
गेहूँ:
गेहूँ की फसल में खरपतवारों पर 2-3 पत्तियां आ गई हो तो इस अवस्था में दोनों प्रकार के खरपतवार नियंत्रण के लिए वेस्टा (मेटसल्फयूरॉन मिथाईल 20 डव्ल्यू पी. + क्लोडिनाफाॉप प्रोपार्जिल 15 डव्ल्यू पी.) 16 ग्राम प्रति 30 लीटर पानी के हिसाब से खेतों में छिड़काव करें। केवल चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार नियंत्रण के लिए 2,4-डी की 50 ग्राम मात्रा को 30 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। छिड़काव के लिए फ्लैट फैन नोजल इस्तेमाल करें। गेहूँ के साथ चौड़ी पत्ती वाली फसल की खेती की गयी हो तो 2,4-डी का प्रयोग न करें।
गेहूँ की फसल में पीला रतुआ बीमारी आने के प्रति भी सचेत रहें। इस रोग में गेहूँ के पत्तों पर पीले रंग के छोटे-2 दाने सीधे धारिओं में प्रकट होते है व दूसरी ओर पत्तों में धारीदार पीलापन दिखाई देता है। बीमारी के जल्दी प्रकट हाने पर पौधे बौने रह जाते हैं व पैदावार पर प्रतिकूल असर पड़ता है। यदि मौसम ठण्डा व नम रहे व थोड़ी वर्षा हो जाए तो यह रोग महामारी का रूप धारण कर सकता है। बीमारी के कारण गेहूँ के दाने या तो बनते ही नहीं है या छोटे व झुर्रीदार बनते हैं। फिर भी जहां पर किसानों ने पी.बी.डब्ल्यू-343, पी.बी.डब्ल्यू-520, पी.बी.डब्ल्यू-550, एच.पी.डब्ल्यू-184, एच.पी.डब्ल्यू-42, एच.एस.-240, एच.एस.-295, एच.एस.-420, यू.पी.-2338, एच. डी. 2967 या डब्ल्यू.एच.-711 किस्मों की बिजाई की है, ऐसे क्षेत्रों में किसानों को बीमारी के प्रति सतर्क रहने की आवश्यकता है। किसानों को यह सलाह दी जाती है कि उपर बताए गए लक्षणों को देखते ही गेहूं की फसल में टिल्ट - प्रापिकोनाजोल 25 ई.सी. या फॉलीक्योर टैवुकोनाजोल 25 ईसी. या बेलाटॉन 25 डब्ल्यू.पी. का 0.1 प्रतिशत घोल यानि 30 मि.ली. रसायन 30 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें व 15 दिन के अन्तराल पर इसे फिर से दोहराएं।
सब्ज़ी उत्पादन:
मध्यवर्ती क्षेत्रों में आलू की बुआई के लिए सुधरी किस्मों जैसे कुफरी ज्योति, कुफरी गिरीराज, कुफरी चन्द्रमुखी व कुफरी हिमालिनी इत्यादि का चयन करें। बुआई के लिए स्वस्थ, रोगरहित, साबुत या कटे हुए कन्द, वजन लगभग 30 ग्राम, जिनमें कम से कम 2-3 आंखें हों, का प्रयोग करें। बुआई से पहले कन्दों को डाईथेन एम-45 (25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) के घोल में 20 मिनट तक उपचारित करें। कंद को छाया में सुखाने के बाद अच्छी तरह से तैयार खेतों में 45-60 सेंटीमीटर पंक्तियों की दूरी एवं कंद को 15-20 सेंटीमीटर के अंतर पर पंक्ति में मेढ़े बनाकर बीजाई करें। बीजाई से पहले 20 क्विंटल गोबर की खाद के अतिरिक्त 20 कि.ग्रा. इफको (12:32:16) मिश्रण खाद तथा 5 कि.ग्रा. यूरिया प्रति बीघा अंतिम जुताई के समय खेतों में डालें। आलू की रोपाई के एक सप्ताह बाद खरपतवार नियंत्रण के लिए ऑक्सीफ्लुरफेन 6 ग्राम या 3 से 4 सप्ताह बाद मेट्रीब्यूजीन 30 ग्राम प्रति 30 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। छिड़काव करते समय खेत में नमी होनी चाहिए। इसके अलावा आलू के 5 प्रतिशत अंकुरण होने पर खरपतवार नियंत्रण के लिए ग्रामेक्सॉन या पैराक्वेट 90 मिली लीटर प्रति 30 लीटर पानी का छिड़काव किया जा सकता है।
प्रदेश के निचले व मध्यवर्ती पहाड़ी क्षेत्रों में प्याज की पौध की रोपाई 15-20 सैं.मी. पंक्तियों में तथा 5-7 सैं.मी. पौध से पौध की दूरी रखते हुए करें। रोपाई के समय 200-250 क्विंटल गोबर की खाद के अतिरिक्त 235 कि. ग्रा. 12:32:16 मिश्रण खाद 105 कि.ग्रा. यूरिया तथा 35 कि. ग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति हैक्टेयर खेतों में डालें। रोपाई के तुरन्त बाद फुहारे से हल्की सिंचाई करें।
इसके अतिरिक्त खेतों में लगी हुई सभी प्रकार की सब्ज़ि़यों जैसे फुलगोभी, बन्दगोभी, गाँठगोभी, ब्रॉकली, चाईनीज बन्दगोभी, पालक, मेथी, मटर व लहसुन इत्यादि में निराई-गुड़ाई करें तथा नत्रजन 40-50 कि.ग्राम यूरिया प्रति हैक्टेयर खेतों में प्रयोग करें। आवश्यकतानुसार सिंचाई करें।
फसल संरक्षण:
सरसों वर्गीय तिलहनी फसलों में व गोभी वर्गीय सब्ज़ियों में तेला या एफिड का प्रकोप होने पर मैलाथियॅान 50 ई.सी. 1 मि.ली. प्रति ली. पानी की दर से छिड़काव करें। अधिक प्रकोप होने पर 15 दिन के अन्तराल पर फिर से छिड़काव करें। ध्यान रखें कि छिड़काव के बाद कम से कम एक सप्ताह तक सब्ज़ियाँ न तोड़ें।
जिन क्षेत्रों में भूमि में पाये जाने वाले कीटों जैसे कि सफेद सुंडी, कटुआ कीट व लाल चींटी इत्यादि का प्रकोप होता है वहां पर आलू की बिजाई से पहले क्लोरपाइरिफॉस 20 ई.सी. 2 लीटर रसायन को 25 किलोग्राम रेत में मिलाकर प्रति हैक्टेयर क्षेत्र की दर से खेत में मिलाएं।
पशुधन - प्रमुख रोग एवं उनका प्रबंधन:
जनवरी महीने में मैदानी और पहाड़ी क्षेत्रों में कड़ाके की ठंड पड़ने लगती है। पहाड़ी इलाकों में बर्फ तथा मैदानों में कोहरे तथा धुंध के कारण पशुओं की उत्पादन और प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है इसलिए पशुपालक इस मौसम में ठंड से बचाब से संबधित प्रबंधन कार्य सुनिश्चित करें। इस माह में पालतू पशुओं की देखभाल करने से संबंधित महत्वपूर्ण सुझावों में जैसे: अत्यधिक खराब मौसम में कृत्रिम रोशनी का प्रबंध, पशुओं को मोटे कपड़े या बोरों से ढंकना, गुनगुना पानी पीने के लिए देना, पशुओं के शरीर का तापमान बनाए रखने के लिए उन्हें खली और गुड़ का मिश्रण खिलाना, गौशाला के फर्श पर सूखे पते या घास को विछाना और खिड़कियों और दरवाजों को रात को मोटे बोरे से ढ़कना आदि शामिल हैं। सर्दी में पशुओं के स्वास्थ्य की निगरानी रखें और किसी भी बीमारी के प्रारम्भिक लक्षण दिखते ही तुरंत पशु चिकित्सक की सलाह प्राप्त करें। सर्दी के मौसम में लगातार बर्फवारी या बारिश की स्थिति में पशुओं के लंबे समय तक गौशाला के अंदर रहने के कारण इनमें कई प्रकार की बीमारियां सामने आ सकती हैं, जिनमें से कुछ संक्रामक रोग पशुओं के लिए घातक साबित हो सकते हैं। गौशाला का ठीक से हवादार न होने की स्थिति में एकत्रित गैस जानवरों के फेफड़ों में जलन पैदा कर सकती हैं और निमोनिया जैसे श्वसन संक्रमण का कारण बन सकती हैं। भेड-बकरी में घातक संक्रामक रोग जैसे बकरी पॉक्स आने की संभावना हो सकती हैं। पशुओं को संक्रामक रोगों से बचाने के लिए उनका टीकाकरण पशु चिकित्सक की सलाह के अनुसार अवश्य करवाऐं। इन महीनों में पशुओं को कई प्रकार के आंतरिक परजीवी जैसे: फैशिओला के संक्रमण से बचाने के लिए उन्हें पशु चिकित्सक की सलाह से परजीवीरोधी दवाई खिलाऐं।
मछली पालक किसानों को सलाह दी जाती है कि तालाब में पानी की मात्रा का विशेष ध्यान रखें तथा समय-समय पर मछलियों की गतिबिधिओं पर भी नजर रखें। तालाबों के बांधों की मरम्मत और नर्सरी की तैयारी प्रारम्भिक तौर पर शुरू कर देनी चाहिए। कॉमन कार्प बरूडर्स (नर और मादा) को चयनित करके उन्हे अलग-अलग तालाबों में एकत्रित करना प्रारंभ कर देना चाहिए। सर्दी के मौसम में मछली पालक किसान अपने तालाबों के पानी की गहराई छह फीट तक रखें, ताकि मछली को गर्म स्थान (वार्मर जोन) में शीत-निद्रा के लिए पर्याप्त जगह मिल सके। शाम के समय नलकूप से नियमित पानी डालकर सतह के पानी को गर्म जा सकता है।
किसान भाईयों एवं पशु पालकों से अनुरोध है कि अपने क्षेत्रों की भौगोलिक तथा पर्यावरण परिस्थितियों के अनुसार अधिक एवं अतिविशिष्ठ जानकारी हेतू कृषि विज्ञान केन्द्र, सिरमौर से 01704257462 पर सम्पर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर के कृषि तकनीकी सूचना केन्द्र 01894-230395 /1800-180 -1551 से भी सम्पर्क कर सकते हैं ।