मस्जिद के इमाम अल्लाह और नमाजियो के बीचएक मज़बूत कडी मौलाना कबीरुद्दीन फारान

मस्जिद के इमाम अल्लाह और नमाजियो के बीचएक मज़बूत कडी  मौलाना कबीरुद्दीन फारान

 अक़्स न्यूज लाइन, नाहन -- 12 जनवरी 

इस्लाम के सभी अमलों में सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र प्रार्थना नमाज़ है जो नमाज इमाम के नेतृत्व में अदा की जाती है. उसका सवाब 27 गुना हो जाता है। जिसके लिए एक इमाम की आवश्यकता होती है, इमामत निस्संदेह एक महान धार्मिक पद और एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। क्योंकि यह एक तरह से पवित्र पैगंबर (सल्ललाहु अलैहि वसल्लम) का प्रतिनिधि है। यह बात मदरसा कादरिया मिस्सरवाला, हिमाचल प्रदेश के प्रधानाचार्य मौलाना कबीरुद्दीन फारान ने सिरमौर जिले के लगभग 35 मस्जिदों के इमामों के बीच एक बैठक में विचार व्यक्त किए।

दार कुतनी में है कि अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद ने फरमाया जो लोग तुम्हारे बीच अच्छे और बेहतर हों उन को अपना इमाम बनाओ, क्योंकि तुम्हारे रब और तमहारे बीच यह तुम्हारे प्रतिनिधि और जामिन होते हैं। इसलिए नबी के जमाने में स्वयं हजरत मुहम्मद (सल्ललाहु अलैहि वसल्लम) प्रतिष्ठित पद पर थे और जब वह बीमार पड़ गए, तो उन्होंने अपने मित्र हजरत अबू बक्र सिद्दीक रजि० को इस महान पद पर नियुक्त किया।

मौलाना फारान ने अपने संबोधन में कहा कि इमाम अपने अनुयायियों की नमाज के गारंटर है और अल्लाह और अनुयायियों के बीच एक मजबूत कड़ी है, इसलिए इमामों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वे अनुयायियों के बारे में जानें ताकि वे सही तौर पर नमाज पढ़ सकें। इसी तरह उनके पद की जिम्मेदारियों में यह भी है कि आस-पड़ोस में धार्मिक हालात क्या है? लोगों की आस्था और मान्यताएं क्या है? दज्जाल और गुमराह लोग किस तरह से लोगों के ईमान को लूट रहे हैं इस पर भी कड़ी नजर रखें।

इस अहम सभा के जरिए मौलाना फारान ने लोगों से अपील की है कि वह इमामों की महानता को जानें और उनकी जरूरतों का सही मायने में ख्याल रखें।
यदि उलमा और इमामों का वाजबी हक अदा नहीं किया गया, तो भविष्य में विवाह. धार्मिक मुद्दों और नमाजे जनाजा पढ़ाने में कठिनाइयों पैदा होंगी। जिसके वह जिम्मेदार होंगे।