बंधन दो प्रकार के होते हैं एक ईश्वरीय और दूसरा कर्मों का बंधन...बी के रमा दीदी

बंधन दो प्रकार के होते हैं एक ईश्वरीय और दूसरा कर्मों का बंधन...बी के रमा दीदी

अक़्स न्यूज लाइन, नाहन -- 18 अगस्त   

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय नाहन सेवा केन्द्र पर रविवार को रक्षाबंधन का कार्यक्रम बड़ी धूमधाम के साथ मनाया गया। इस अवसर पर सेवाकेंद्र प्रभारी बी के रमा दीदी जी ने उपस्थित सभी भाई बहनों को राखी की शुभकामनाएं दी एवं उन्हें रक्षा सूत्र बांधते हुए रक्षा बंधन के आध्यात्मिक रहस्य से भी अवगत करवाया। उन्होनें कहा कि बंधन दो प्रकार के होते हैं एक ईश्वरीय और दूसरा धर्म अर्थात् कर्मों का बंधन। ईश्वरीय बंधन से मनुष्य को सुख मिलता है लेकिन दूसरे प्रकार के बंधन से दुख की प्राप्ति होती है। रक्षाबंधन,ईश्वरीय बंधन, आध्यात्मिक बंधन या धार्मिक बंधन है।

 पौराणिक कथाओं में भी त्यौहार का विशेष महत्व बताया गया है लेकिन आज लोगों ने इसे एक लौकिक उत्सव ही बना दिया है। जैसे अध्यात्म और धर्म-कर्म के लक्षण खो जाने के कारण संसार के तीर्थों से अब सत या सार निकल गया है, वैसे ही अध्यात्म भी इस त्यौहार से खत्म हो गया है अन्यथा यह त्यौहार बहुत ही महत्वपूर्ण और उच्च कोटि का त्यौहार है। उन्होंने कहा कि यह त्यौहार पवित्रता और भाईचारे का पर्व है। रक्षाबंधन हम सभी भारतवासियों के लिए एक पावन पर्व है। इस दिन हम बहनें अपने भाई को राखी बांधती हैं। इस शुभ आशा के साथ कि उसका भाई जीवन भर उसकी रक्षा करेगा।

यह बंधन एक ऐसा पवित्र बंधन है जिसमें एक बार बंध जाने से उस रिश्ते का सम्मान बहुत बढ़ जाता है। आज के समय पर पवित्र डोर राखी का महत्व व अर्थ दोनों ही बदल गए हैं। बस साल में एक बार आने वाली रस्म बनकर रह गई है। कलयुग की इस भयावह स्थिति को देख स्वयं परमपिता परमात्मा अवतरित होकर हमें इस पवित्र बंधन राखी का वास्तविक रहस्य बताते हैं। वह हमें अपना असली परिचय देते हैं कि वास्तव में हम शरीर नहीं अपितु इस शरीर को चलाने वाली एक आत्मा हैं।आत्मा अजर-अमर - अविनाशी है। जो न मरती है,ना जलती है। जबकि यह शरीर विनाशी है जो कि एक समय आने पर समाप्त हो जाता है।

इसके पश्चात् आत्मा अपने लिए दूसरा शरीर धारण करती है। जिसको हम पुनर्जन्म कहते हैं। इसका मतलब शरीर बदलता है परंतु आत्मा वही रहती है। उन्होंने आगे कहा कि वास्तव में इस पर्व के पीछे केवल शारीरिक रक्षा का सवाल नहीं है बल्कि संकल्पों के बंधन का भाव भी समाया होता है। बी के दीपशिखा दीदी जी ने कहा कि मानव स्वभाव से ही स्वतंत्रता प्रेमी है। मूल रूप से वह जिस बात से बंधा हुआ है, उसे छूट देने का प्रयास करता है परंतु "रक्षाबंधन" को बहनें और भाई, त्यौहार या उत्सव समझकर खुशियों से मिलते हैं।

यह एक नायाब और प्यारा रिश्ता है। रक्षा का अर्थ केवल स्थूल रक्षा से नहीं बल्कि धर्म रक्षा से है और धर्म है आत्मा का।   संसार के रचयिता कल्याणकारी परमपिता परमात्मा के हम आत्माएं सब आपस में भाई-बहन है क्योंकि आत्मिक रूप में हमारा पिता सिर्फ परमात्मा है। बी के शिवानी बहन रक्षाबंधन की बधाई देते हुए कहा कि रक्षाबंधन बांधने के उपलक्ष्य में मिलने वाले पैसे और स्थूल उपहार की बजाय एक-दूसरे से गुणों की लेन-देन करें तो अपराध मुक्त और सद्भावपूर्ण भारत व एक नए विश्व का निर्माण हो सकेगा। उन्होंने कहा कि रक्षाबंधन का अर्थ ही है एक दूसरे की पवित्रता व सम्मान की रक्षा करना जो कि केवल तब होगा जब हम सब आत्मिक संबंध जोड़ेंगे।राखी बंधन अर्थात् आपस में एक पवित्र प्रेम के बंधन में बंधना। जो हम सबके आत्मिक पिता परमात्मा की बताई हुई शिक्षाओं पर चलकर ही संभव है। आज इस पावन पर्व पर हम सब एक दूसरे को सच्ची-सच्ची राखी बांधकर इस राखी उत्सव के महत्व को बढ़ाते चलें।

इस अवसर पर बी के प्रियंका बहन ने "ढूंढती हैं जिसे आज सबकी नज़र" बहुत सुंदर गीत प्रस्तुत किया। इस मौके पर महेंद्र भाई, अनीता टोंक, मंजू, राखी, अदिति,यादविंदर, राजीव, अरुण, बबीता, कमलेश अनीता वर्मा व आसपास के क्षेत्रों से आये अनेक लोग मौजूद रहे।