धारा.118 के कारण लाखों गैर कृषक हिमाचली बना डाले दूसरे दर्जे के नागरिक
नाहन, ३ मई: लाखों गैर कृषक हिमाचलियों केमानवीय अधिकारों की चिंता नहीं है। सरकार ने इस मामले में कानून का डंडा दिखाकर अपनी आंखें मूंद लीं। क्या हिमाचल के विकास में लाखों गैर कृषकों का योगदान नहीं है। दशकों से गैर कृषक प्रदेश में आवास, व्यवसाय या खेती के लिए बिना इजाजत कृषकों की तर्ज पर सरकार से भूमि खरीदने का हक मांग रहे हैं लेकिन सत्ता में आने वाली पार्टियों ने कुछ नहीं किया उलटा धारा 118 को हाथियार बनाकर जब जब मौका मिला एक.दूसरे पर तान दिया। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या लाखों गैर कृषकों ने प्रदेश के विकास के लिए अपना योगदान नहीं दिया। क्या वे अपना खून पसीना नहीं बहा रहे हैं। क्या वे टैक्स नहीं देते। क्या वे वोट नहीं देते। गैर कृषकों के साथ तो संविधान के तहत मिले मौलिक अधिकारों का ही हनन हो रहा है। जिसमें कहा गया है कि भारत का नागारिक किसी भी राज्य में रहने के लिएए व्यापार करने के लिए कानून लागू किया है। पूरी तरह से स्वंतंत्र है।
सवाल यह भी है कि जिन किसानों की भूमि को बचाने के लिए सरकार ने धारा 118 को लागू किया था वही किसान दशकों से अपनी भूमि को बेचते आए हैं। आज जमीन बेचकर धन्ना सेठ ही किसान बने हैं और बड़े-बड़े बिल्डर भी गैर कृषक तो आज भी जमीन का एक टुकड़ा खरीदने के लिए सरकार के रहमोकरम पर निर्भर है।
धारा 118 ने तो यहां के लाखों नागरिकों को भावनात्मक रूप से दो हिस्सों में बांट डाला है। कानून विशेषज्ञ भी मानते हैं कि अगर गैर कृषक हिमाचलियों को सीधे जमीन खरीदने का हक देना है तो ये सब की बजाय राजनीतिक इच्छा शक्ति से ही होगा। गैर कृषकों के मामले में सरकार ने जो रुख अपनाया है उसके बाद गैर कृषकों में पिछले कई सालों से पलायनवादी सोच उभरी है। बहुत से गैर कृषक अब दूसरे राज्यों की ओर रुख करने पर मजबूर हो चुके हैं जहां धारा 118 जैसी बंदिशें नहीं हैं। हिमाचल के अलावा देश का कोई ऐसा राज्य नहीं है।
शहरी क्षेत्रों में नहीं हो रहे हैं जमीन के पंजीकरण: शहरी क्षेत्रों में भी गैर कृषकों के साथ भेदभाव जारी है। धारा 118 के नाम पर गैर कृषकों को यह कहकर जमीन के पंजीकरण से वंचित किया जा रहा है कि अगर गैर कृषक का पुश्तैनी घर में हिस्सा बनता है तो आप अन्यत्र भूमि खरीदने के पात्र नहीं