भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान में 9वां रबींद्रनाथ टैगोर स्मृति व्याख्यान
अक्स न्यूज लाइन शिमला , 05 नवम्बर :
भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (IIAS), शिमला ने 9वें रबींद्रनाथ टैगोर स्मृति व्याख्यान का आयोजन मंगलवार को किया। इस वर्ष का यह प्रतिष्ठित शैक्षणिक कार्यक्रम भारत और यूरोप के बदलते सांस्कृतिक संबंधों पर केंद्रित रहा। इस व्याख्यान को नई दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूटो सर्वेंटेस के निदेशक डॉ. ऑस्कर पुजोल रीम्बौ ने “इंडिया एंड यूरोप फेसिंग मिरर, मर्जिन्ग रीफ्लेक्शन” विषय पर प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन से हुई, इस अवसर पर भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के निदेशक प्रोफेसर राघवेंद्र पी. तिवारी ने स्वागत भाषण दिया। इसके पश्चात संस्थान की अध्यक्ष प्रोफेसर शशिप्रभा कुमार ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में वैश्विक संस्कृतियों को समझने में बौद्धिक आदान-प्रदान की महत्ता पर जोर दिया और इसमें शिमला संस्थान की भूमिका को रेखांकित किया।
डॉ. पुजोल ने विद्वतापूर्ण व्याख्यान में भारत और यूरोप के ऐतिहासिक संबंधों और संवादों पर प्रकाश डाला। उन्होंने औपनिवेशिक काल से शुरू हुई "मजबूर मुलाकात" के संबंध को अब एक जटिल और समृद्ध सांस्कृतिक आदान-प्रदान के स्रोत रूप में परिभाषित किया। डॉ. पुजोल ने भारत और यूरोप के बीच सहयोग की संभावनाओं पर जोर देते हुए कहा कि भविष्य में इन दोनों सभ्यताओं के बीच फलदायी संवाद की अपार संभावनाएँ हैं जो औपनिवेशिक धरोहर से परे जाकर नए युग की ओर अग्रसर हो सकती हैं। अपने विचारों में उन्होंने दोनों सभ्यताओं के बीच के अंतर और समानताओं पर चर्चा की और कहा कि भारत की अद्वैत परंपरा इस दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण मार्ग प्रदान कर सकती है।
इस कार्यक्रम ने भारत और यूरोप के बीच चल रहे संवाद पर भी विचार प्रस्तुत किए गए, जिनमें दोनों पक्षों की परस्पर जिज्ञासा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को महत्व दिया गया। डॉ. पुजोल ने इंस्टीट्यूटो सर्वेंटेस में हाल ही में हुई प्रस्तुति का भी उल्लेख किया, जिसमें पंडित नित्यानंद शास्त्री द्वारा 1936 में अनुदित कश्मीरी संस्करण का पुनर्प्रकाशन किया गया था। यह प्रस्तुति दोनों क्षेत्रों के बीच साहित्य और संस्कृति के ऐतिहासिक आदान-प्रदान को दर्शाती है, जो पारस्परिक संबंधों को आकार देती है।
व्याख्यान का समापन डॉ. पुजोल द्वारा अद्वैत दर्शन पर हुई विस्तृत चर्चा के साथ हुआ, उन्होंने कहा कि डॉ. करण सिंह ने पहले इसका उल्लेख किया था। इसमें यह बताया गया कि दोनों समाज आधुनिकता बनाम परंपरा या उत्तर बनाम दक्षिण जैसे द्वंद्वों से परे जाकर कैसे लाभान्वित हो सकते हैं। इस सूक्ष्म दृष्टिकोण ने उपस्थित लोगों को यह सोचने के लिए प्रेरित किया कि भारत और यूरोप किस प्रकार वैश्वीकरण की दुनिया में एक नए अंतरसांस्कृतिक सहयोग की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
व्याख्यान के बाद संस्थान के सचिव श्री मेहरचंद नेगी ने धन्यवाद ज्ञापन दिया और विशेष रूप से डॉ. ऑस्कर पुजोल को उनके विचारोत्तेजक व्याख्यान के लिए आभार व्यक्त किया। सत्र का समापन राष्ट्रगान और चाय के दौरान अनौपचारिक चर्चा के साथ हुआ।
9वें टैगोर स्मृति व्याख्यान ने सांस्कृतिक समझ और बौद्धिक संवाद को बढ़ावा देने के संस्थान के दृढ़संकल्प को प्रदर्शित किया, जो रबींद्रनाथ टैगोर के विविधता और एकता को गले लगाने के दृष्टिकोण के प्रति सच्ची निष्ठा को दर्शाता है।
व्याख्यान का सारांश:
“इंडिया एंड यूरोप: फेसिंग मिरर, मर्जिन्ग रीफ्लेक्शन” शीर्षक से इस व्याख्यान में भारत और यूरोप के बीच पिछले कुछ शताब्दियों के संबंधों की गहन खोज की गई। डॉ. पुजोल ने औपनिवेशिक इतिहास के दर्पणों के माध्यम से और समकालीन अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विस्तार पर जोर दिया। उन्होंने टैगोर और डॉ. करण सिंह जैसे विचारकों के दार्शनिक चिंतन को साझा कर यह संदेश दिया कि औपनिवेशिक अतीत से परे एक नया भविष्य तैयार किया जा सकता है, जो आपसी सम्मान और साझा दार्शनिक संवाद पर आधारित हो।
डॉ. ऑस्कर पुजोल रीम्बौ के बारे में:
डॉ. ऑस्कर पुजोल, एक प्रतिष्ठित संस्कृत विद्वान और इंस्टीट्यूटो सर्वेंटेस, नई दिल्ली के निदेशक हैं। उन्होंने संस्कृत साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनके विद्वतापूर्ण कार्यों में अर्थववेद से पृथ्वी सूक्त, बिल्हण का प्रेम चोर, और पतंजलि का योगसूत्र जैसी प्राचीन संस्कृत रचनाओं का अनुवाद शामिल है। डॉ. पुजोल के प्रयासों ने भारत-हिस्पानी संबंधों को मजबूती मिली है, जिससे सांस्कृतिक और शैक्षणिक आदान-प्रदान को प्रोत्साहन मिला है।