फिर जन्मों कृष्ण डॉ एम डी सिंह सूख रही यमुना बढ़िआए छूने पांव गोकुल नहीं गोकुलों से गौवें गायब गोप गोपियां विलुप्त

फिर जन्मों कृष्ण   डॉ एम डी सिंह      सूख रही यमुना बढ़िआए छूने पांव     गोकुल नहीं  गोकुलों से गौवें गायब गोप गोपियां विलुप्त


कंस नहीं 
कंसों के गांवों में 
फिर जन्मों कृष्ण !

वासुदेव-देवकी नहीं 
वासुदेवों-देवकियों के पावों में
दिख रहीं कठिन बेड़ियां
फिर जन्मों कृष्ण !

यशोमती नहीं 
यशोमतियों ने जना गोकुल के नंद-ठावों में 
तुम्हारे लिए ललियों को
सूख रही यमुना बढ़िआए छूने पांव
फिर जन्मों कृष्ण !

गोकुल नहीं 
गोकुलों से गौवें गायब गोप गोपियां विलुप्त 
माखन भी नहीं कि चुराओ 
कह दो सब लौट आएं चरने-चराने
तुम भी माखन चुराने
फिर जन्मों कृष्ण !

वृंदावन नहीं 
वृंदावनों से वृंदाएं (तुलसी) क्षुब्ध, राधा गई 
मन मोहिनी प्रीति गई, रास की रीति गई
सुदामा के चावल गए, मटकी फूटने की भीति गई
गोपियां आईं नहीं नहाने, वासुकी आया नहीं नथाने
कि राधा नाचे बंसी बजाने
फिर जन्मों कृष्ण !